भारत-पाकिस्तान महासंद्य

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हमारे गृहमंत्री जी के दव्ारा भारत-पाकिस्तान महासंद्य का संभव होना एक बहुत ही रचनात्मक विचार है। यूँ तो पूर्व में भी कई कटिपय राजनेताओं ने इस संबंध में अपने विचार रखे हैं तथापि आडवाणी जी का ऐसा मानना विशेष महत्त्व रखता है। वस्तुत: आजादी के बाद से ही कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय जामा पहनाकर एक अत्याधिक विवादास्पद मुद्दा बना दिया गया है। गत पाँच दशकों में 4 युद्ध लड़कर व अपार जन-धन हानि पहुँचाकर भी इस समस्या को सुलझाने का लेशमात्र सूत्र भी हाथ नहीं लगा है एवं कश्मीर तो दो शक्तियों के बीच पीसकर अपना अस्तित्व ही खोता चला जा रहा है। जन-जीवन अशांत हैं, हजारों परिवारों के घर उजड़ गए हैं, व्यवसाय ठप हो गया है और इस मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच शत्रुता निरंतर बढ़ती जा रही है।

अब दोनों देश परमाणु शक्तियाँ बन चुके हैं अत: युद्ध करना तो भयंकर विनाश को आमंत्रित करने के समान है। परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र तो इन्हें शांति स्थापित करने का विकल्प मानते रहें हैं क्योंकि इनका युद्ध में प्रयोग तो मानवता के महाविनाश को लाने वाला होगा। अब तो राष्ट्रों की सीमाएँ राजनैतिक लाचारी मात्र रह गई हैं अन्यथा तो संसार इतना छोटा हो गया है कि हम एक दूसरे पर पूरी तरह से निर्भर हो गए हैं। सारे विश्व के सांस्कृतिक व सामाजिक चिंतन में शनै:-शनै: एकरुपता आती चली जा रही है। मात्र कुछ स्वार्थी राजनेताओं को छोड़ कर किसी भी देश का जो बहुसंख्यक समाज है वह शांति व प्रगति चाहता है।

इस सारी पृष्ठीाूमि को ध्यान में रखते हुए अब दोनों देशों के राजनेताओं व बुद्धीजीवी को इस प्रकार के महासंघ को अम्लीय रुप देने का प्रयास करना चाहिए। अगर ऐसी स्थिति बनती है तो पूरा कश्मीर एक होगा व भारत-पाक के राज्य जो स्वायत्ता के लिए संघर्षशील है उनकी समस्याएँ भी सुलझेंगी व ऐसे संघ राज्य का उदय होगा जिसका मुख्य उद्देश्य करोड़ों अभावग्रस्त लोगों का उत्थान करना होगा।

वर्तमान में हमारे विभिन्न राजनैतिक नेतागण जिनका अधिकांश समय काश्मीर जैसे विवादों में लगा रहता है, वे जनता के बारे में सोचेंगे जो एक शुभ संकेत होगा। इतिहास गवाह है कि इस भूभाग में ऐसे महासंघ पूर्व में भी बने हैं लेकिन वे साम्राज्यवादियों की रचना रहे हैं अत: स्थाई रुप धारण नहीं कर पाए परन्तु अब यदि ऐसे महासंघ का निर्माण हुआ तो वह एक स्थाई रुप धारण कर विश्व राजनीति में एक उत्कृष्ट पहचान बनाएगा।

निसंदेह ऐसा करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा एवं कई असफलताएँ होंगी लेकिन यदि एक बार हम निश्चय कर लें तो कवि की निम्न पंक्तियाँ हमें प्रेरणा देती रहेंगी-

“अपनी प्रथम विफलता पर पथ भूल ना जाना पथिक कहीं”

- ‘कुट-नीतिक विजय’

भारत-पाक तनाव के चलते भारत ने कई सकारात्मक कदम उठाए है जैसे कि जहाजों को वापस बेस पर बुलाना, व्यापारिक यानों की भारत से उड़ान चालू करना, सीमा पर तैनात सैनिकों को अवकाश देना आदि। कई देशों व बुद्धिजीवियों का यह मानना है कि यह कदम अमेरिका के दबाव में आकर उठाए गए हैं परन्तु यह वस्तु स्थिति नहीं हैं भारत की विदेश नीति पर कभी बाहरी दबाव नहीं रहा हैं लेकिन पाक. ने हमेशा इसका गलत उत्तर ही दिया है जो कारगिल के युद्ध से स्पष्ट है। भारत ने विश्व के शक्तिशाली देशों में यह सिद्ध कर दिया कि वह आतंकवाद का शिकार है एवं वह तभी पाक. से बात करेगा जब वह इसे समाप्त कर दे। आतंकवाद के शिकार अमेरिका ने भी इस बात को महसूस किया है व पाक. पर यह दबाव डाला है कि वह अपनी भूमि से आतंकवाद पूर्णत: नष्ट कर दे। कुछ समय पूर्व यह भी कथन सामने आए कि लादेन भी पाक. में शरण लिए है। तब पाक. पर निरन्तर दबाव बढ़ने लगा व विश्व के लगभग सभी राष्ट्रों ने अपनी निगाहे पाक. पर जमा लीं। इन सब बातों के चलते भारत ने पाक. को यह तथ्य स्वीकारने के लिए मजबूर कर दिया कि यह आतंकवाद पाक. दव्ारा फैलाया जा रहा है। जब पाक. को स्वंय इस बात का अहसास हुआ तो उसने इसे रोकने का वादा किया- यह फर्नाडिस के कथन से सिद्ध है कि “अब तो सीमा पार घुसपैठ लगभग समाप्त-सा हो गया है” तब यह कहा जा सकता है कि इस कार्य में भारत की ‘कुट-नीतिक विजय’ रही है कि वह पाक. को यह अहसास करा पाया कि यह सब आतंक उसी के दव्ारा प्रेषित था। चूंकि भारत तो सदैव शांतिप्रिय देश रहा है यह माहौल जो बनाया गया था पाक. को स्वीकारने के लिए था।