दिल्ली में संसदीय सचिव से संबद्ध मुद्दा (Mudra Related to Parliamentary Secretary in Delhi – Governance and Governance)

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सुर्ख़ियों में क्यों?

संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद की परिभाषा से छूट प्रदान करने संबंधी प्रावधान करने वाले दिल्ली विधान सभा सदस्य (अयोग्यता निवारण) अधिनियम, 1997 को राष्ट्रपति कार्यालय के दव्ारा स्वीकृति देने से इनकार कर दिया गया।

अन्य राज्यों में संसदीय सचिव

• वर्तमान में, इस तरह के पद गुजरात, पंजाब और राजस्थान आदि राज्यों में मौजूद हैं।

• उच्च न्यायालय में दाखिल विभिन्न याचिकाओं में संसदीय सचिव की नियुक्ति को चुनौती दी गयी है।

• जून 2015 में, कोलकाता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में 24 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया।

• इसी प्रकार के निर्णय मुंबई उच्च न्यायालय, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय, आदि दव्ारा दिए गए थे।

लाभ के पद की परिभाषा

संविधान में ‘लाभ के पद’ की परिभाषा नहीं दी गयी है किन्तु पूर्व निर्णयों के आधार पर निर्वाचन आयोग के दव्ारा लाभ के पद के परीक्षण हेतु निम्नलिखित पांच प्रमुख कसौटियों को आधार माना गया है:

§ क्या पद पर नियुक्ति सरकार के दव्ारा की गयी हैं?

§ क्या पद के धारणकर्ता को सरकार अपनी स्वेच्छा से पद से हटा सकती है?

§ क्या पारिश्रमिक का भुगतान सरकार के दव्ारा किया जाता है?

§ पद के धारणकर्ता के कार्य क्या हैं?

§ क्या इन कार्यो को संपन्न करने की प्रक्रिया पर सरकार का नियंत्रण बना रहता है?

समग्र रूप से मुद्दा क्या हैं?

§ वर्ष 2015 में, दिल्ली सरकार ने छह मंत्रियों के लिए 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की थी।

§ इस पद को “लाभ के पद” की परिभाषा से छूट नहीं प्रदान की गयी थी।

§ दिल्ली सरकार के दव्ारा संसदीय सविच के पद को लाभ के पद की परिभाषा से छूट प्रदान करने संबंधी प्रावधान करने के लिए दिल्ली विधान सभा सदस्य (अयोग्यता निवारण) अधिनियम, 1997 में संशोधन करने हेतु प्रस्ताव लाया गया।

§ लेकिन राष्ट्रपति ने संशोधन प्रस्ताव को अपनी सहमति देने के लिए मना कर दिया है।

§ एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में दिल्ली की विशेष स्थिति के कारण, कोई विधेयक विधानसभा दव्ारा पारित किये जाने के बाद भी तब तक “कानून” नहीं माना जाता है जब तक इस पर दिल्ली के लेफ्टिनेंट राज्यपाल और भारत के राष्ट्रपति दव्ारा स्वीकृति प्रदान नहीं कर दी जाती है।

§ दिल्ली सरकार का तर्क है कि संसदीय सचिव किसी भी पारिश्रमिक या सरकार की ओर से भत्तों के लिए पात्र नहीं हैं, अत: इस पद को “लाभ के पद” की परिभाषा से छूट प्रदान की जानी चाहिए।

संवैधानिक प्रावधान

• संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (क) और अनुच्छेद 191 (1) (क) के तहत कोई व्यक्ति संसद के एक सदस्य के रूप में या एक विधान सभा/परिषद की सदस्यता के लिए निरर्ह होगा अगर वह केंद्रीय या किसी राज्य सरकार (बशर्ते कि संसद या राज्य विधानसभा दव्ारा पारित किसी अन्य कानून दव्ारा ऐसे पद को लाभ के पद की परिभाषा से छूट न प्रदान कर दी गयी हो) के अंतर्गत “लाभ का पद” धारण करता है।

• अनुच्छे 164 (1ए) के अनुसार मंत्रिपरिषद के सदस्यों की कुल संख्या राज्य विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या का अधिकतम 15 प्रतिशत (अपनी विशेष स्थिति के कारण दिल्ली के लिए यह सीमा 10 प्रतिशत है) ही हो सकती है। अत: संसदीय सचिव का पद संविधान के इस अनुच्छेद का भी उल्लंघन करता है क्योंकि एक संसद सचिव का दर्जा राज्य मंत्री के पद (संसद सचिव राज्य मंत्री की रैंक धारण करता है) के बराबर है जिससे कुल मंत्रियों की संख्या निर्धारित सीमा से अधिक हो जाती है।

भविष्य में उठाये जाने वाले कदम

• अब भारतीय निर्वाचन आयोग को यह तय करना होगा कि क्या संसदीय सचिवों की नियुक्ति की शर्तो और नियमों को देखते हुए इसे “लाभ का पद” माना जाना चाहिए।

• राष्ट्रपति के फैसले को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है क्योंकि यह भारत के संविधान के तहत प्रदान की गयी उसकी कार्यकारी शक्ति हैं। इस मामले में सुप्रीम (सर्वोच्च) न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

• हालांकि, निर्वाचन आयोग दव्ारा लिए गए निर्णय को प्रभावित पक्ष के दव्ारा दिल्ली उच्च-न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। इसका अर्थ यह है कि आम आदमी पार्टी चुनाव आयोग दव्ारा विधायकों को अयोग्य घोषित करने की स्थिति में अदालत का सहारा ले सकती है।