Science and Technology: New Developments in Health Sector and CSIR Initiative

Get top class preparation for CTET-Hindi/Paper-1 right from your home: get questions, notes, tests, video lectures and more- for all subjects of CTET-Hindi/Paper-1.

स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए नवीन विकास (New Developments in Health Sector)

कालाजार के टीक का विकास (Kala-Azar Vaccine Development)

  • भारत के वैज्ञानिक दल ने कालाजार के टीके का विकास किया है। विदित है कि एककोशिकीय परजीवी लेशमानिया के संक्रमण के कारण कालाजार रोग होता है। इस रोग का प्रभाव मुख्यत: पूर्वी भारत और नेपाल, बांग्लादेश के क्षेत्रों में हैं।
  • इस रोग का प्रभाव प्लीहा (Spleen) , यकृत, अस्थि मज्जा जैसे अंगों पर हो सकता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारतीय उपमहादव्ीप अफ्रीका के कुछ भागों, दक्षिणी यूरोप और मध्य तथा दक्षिणी अमेरिका में प्रति वर्ष 50000 लोगों की मृत्यु हो जाती है। भारत में बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में इस रोग के प्रकोप दिखे हैं।
  • इस रोग के संक्रमण को रोकने के लिए अभी तक लाइसेंस युक्त टीके की व्यवस्था नहीं की जा सकी है।
  • भारतीय वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि लेशमानिया परजीवी हेम (Haem) नामक लौह अणु को संश्लेषित कर सकने की क्षमता नहीं रखते हैं। ये परजीवी मानव की लाल रक्त-कोशिकाओं में मिलने वाले हीमोग्लोबिन का अवशोषण करते है। पुन: ये हीमोग्लोबिन को विखंडित कर हेम का उपयोग अपने लिए कर लेते है।
  • उल्लेखनीय है कि आज से 14 वर्ष पूर्व दिल्ली स्थित राष्ट्रीय प्रतिरक्षा संस्थान के चिकित्सकों ने दर्शाया था कि वे परजीवी अपने बाहरी सतह पर ऐसे प्रोटीन का उपयोग करते हैं जिनसे हीमोग्लोबिन जुड़ सकता है। इस प्रोटीन को हीमोग्लोबिन रिसेप्टर कहा जाता है। अब वैज्ञानिकों ने इस रिसेप्टर से प्रतिरक्षा करने वाले टीके का विकास किया है।
  • वैज्ञानिकों ने डीएनए की पट्‌टी में हीमोग्लोबिन रिसेप्टर संबंद्ध आनुवांशिक सूचनाएँ स्थापित कर टीके का विकास किया है। इस डीएनए को चुहिये कि मांसपेशियों में डाला गया। मांसपेशी कोशिकाओं ने डीएनए प्राप्त करने पर रिसेप्टर प्रोटीन बनाए। इस प्रोटीन ने जानवरों में रक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की। साथ ही प्रतिजैविक भी बनाए जो हीमोग्लोबिन रिसेप्टर को निष्प्रभावी कर सके। इस प्रकार परजीवी हीमोग्लोबिन प्राप्त करने मेें सक्षम नहीं हो पाएंगे।

सीएसआईआर की पहल (CSIR Initiative)

  • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) ने एक रासायनिक संग्रहालय (Chemical Library) बनाने के लिए देशव्यापी वेंचर प्रारंभ किया है। इस प्रयोगशाला में नए ड्रग खोजे जाने का कार्य किया जाएगा। मुख्य तौर पर टीबी मलेरिया जैसे रोगों के उपचार के लिए उपयुक्त ड्रग खोजे जाएगे।
  • CSIR ने वर्ष 2008 में ओपन सोर्स ड्रग डिस्कवरी प्रोजेक्ट (OSSD) प्रारंभ किया था ताकि मुक्त नवाचार एवं शोध कार्यों के जरिए टीबी, मलेरिया जैसे रोगों के ड्रग का पता लगाया जा सके।
  • ओएसएसडी कमेस्ट्री आऊटरीच इनिशिएटिव के तहत विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और अन्य संस्थानों में छात्रों को कृत्रिम रसायन और कृत्रिम यौगिक निर्माण का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
  • विदित है कि वैज्ञानिकों के अनुसार संक्रमण रोधी दवाओं के विकास में रासायनिक विविधिकृत यौगिकों का न होना सबसे बड़ी बाधा होती है।
  • इस प्रोजेक्ट में आईआईटी दिल्ली, खड़गपुर, मद्रास और बंबई ने तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपनी भूमिका निभायी है। अब ओएसएसडी केम (OSSD Chem) ने रासायनिक संग्रहालय बनाने की पहल की है ताकि ड्रग खोज कार्यक्रम के मद्देनजर विविध यौगिकों को संग्रहित किया जा सके। इस प्रकार, ओएसएसडी में लाये गए सभी अणुओं का स्क्रीनिंग किया जाएगा।

रिजेनरेटिव मेडिसीन (Regenerative Medicine)

  • कोशिकाओं, उत्तकों और अंगों की मरम्मत करने, स्थानांतरित करने और पुनरोत्पादन के लिए रिजेनरेटिव मेडिसीन उपचार के प्रति रूझान बढ़ा है। इस उपचार में स्तंभ कोशिकाओं के उपयोग, घुलनशील अणुओं, आनुवांशिक अभियांत्रिकी, और उन्नत कोशिका चिकित्सा तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
  • क्षतिग्रस्त उत्तकों को स्वत: पुनरूत्पादित करने के लिए शरीर को उत्प्रेरित करने, उत्तक अभियांत्रिकी दव्ारा पुनरोत्पादन को उत्प्रेरित करने तथा क्षतिग्रस्त स्थान पर स्वस्थ उत्तकों को सीधे प्रत्यारोपित करने के माध्यम रिजेनरेटिव मेडिसीन प्रणाली में अपनाए जाते हैं।
  • इस प्रणाली की विशेषता यह है कि अन्य उपचार प्रजातियों की अपेक्षा इसका केवल एक बार ही उपयोग किया जाता है न कि बार-बार।
  • उदाहरण के लिए मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को सामान्यत: इंसुलिन का निरंतर सेवनन करना पड़ता है। लेकिन रिजेनरेटिव मेडिसीन प्रणाली के जरिये पीड़ित व्यक्ति में ही इंसुलिन उत्पादन करने वाली कोशिकाओं का पुनरोत्पादन किया जाता है।
  • इस प्रणाली का उपयोग शारीरिक अंग को क्षतिग्रस्तता की स्थिति में प्रत्यारोपण के स्थान पर उस अंग के उत्तकों के पुनरोत्पादन में भी किया जा सकता है। इससे वह अंग फिर से कार्य करने में सक्षम हो सकता है।

रिजेनरेटिव मेडिसीन का उपयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में किए जाने की संभावनाएँ हैं-

  • शारीरिक प्रतिरक्षा में वृद्धि करना।
  • यकृत पुनरोत्पादन
  • आनुवांशिक रक्त विकृति की स्थिति में जीन चिकित्सा और स्तंभ कोशिका प्रत्यारोपण
  • रक्त-आधान (Transfusion) के लिए कृत्रिम रक्त तैयार करना।
  • जोड़ों के दर्द का उपचार किया जाना।

भारत में भी रिजेनरेटिव मेडिसीन शोध के लिए निम्नलिखित संस्थाएँ कार्यरत हैं-

  • किश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर
  • एम्स (AIIMS) , दिल्ली
  • पोस्ट ग्रेजुएट इन्सटीट्‌यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) , चंडीगढ़
  • एल. वी. प्रसाद आई इंस्टीट्‌यूट, हैदराबाद।

रिजेनरेटिव मेडिसीन प्रणाली के स्तर पर विगत दिनों एक नवीन उपलब्धि हासिल हुई है। यह शोध किया गया है कि शरीर में भी वयस्क कोशिकाओं का रिप्रोग्रामिंग किया जा सकता है। अभी तक प्रयोगशाला स्तर पर ही वयस्क कोशिकाओं का रिप्रोग्रामिंग किया जाता रहा है।

  • इस नवीन शोध के आधार पर शरीर में ही उत्तकों की मरम्मत की जा सकती है। अर्थात क्षतिग्रस्त हो चुके उत्तकों का प्राकृतिक रूप से पुनरोत्पादन किया जा सकता है।
  • चर्म कोशिकाओं जैसी वयस्क कोशिकाओं (इन्ड्‌यूस्ड प्लूरीपोटेन्ट स्तंभ कोशिक; Ips Cells) की रिप्रोग्रामिंग कर भ्रूण-समरूप स्तंभ कोशिकाओं का निर्माण करने से थेराप्यूटिक उपलब्धि हासिल हुई है। जहाँ एक ओर शरीर के अंदर वयस्क कोशिकाओं की रिप्रोग्रामिंग एक आश्चर्यजनक उपलब्धि है वहीं शोधकर्ताओं ने यह भी दर्शाया है कि रिप्रोग्राम किए गए वयस्क कोशिकाओं में टोटीपोटेन्सी (Totipotency) विशेषता पायी जाती है।
  • किसी भी प्रकार की विशिष्ट कोशिका बनने की क्षमता के साथ-साथ टोटीपोटेन्ट कोशिकाएँ प्लेसेन्टा के इतरभ्रूण कोशिकाओं (Extra Embryonic Cells) का गुण रखती हैं। स्वयं भ्रूणीय स्तंभ कोशिकाएँ भी शायद ही कभी टोटीपोटेन्सी दर्शाती हैं। ये कोशिकाएं अधिकाशंत: प्लूरीपोटेन्सी दर्शाती हैं। अर्थात इनमें कोई भी विशिष्ट कोशिका बनने की क्षमता तो होती है लेकिन प्लेसेन्टा के इतर भ्रूण कोशिका बनने की क्षमता नहीं होती है।
  • उल्लेखनीय है कि निषेचित अंडे का विभाजन प्रारंभ होने के कुछ दिन बाद बपास्टोसिस्ट (कोशिकाओं का गुच्छ) बनाता हैं। इसमें आंतरिक कोशिका द्रव्यमान और बाह्‌य कोशिका द्रव्यमान होता है। आंतरिक कोशिका द्रव्यमान, जिसमें कि भ्रूणीय स्तंभ कोशिकाएँ होती है वह भ्रूण बन जाता है जबकि ट्रोफाब्लास्ट कहा जाने वाला बाह्‌य कोशिका द्रव्यमान प्लेसेन्टा के भ्रूण इतर ऊतक के रूप में विकसित होता हैं।
  • अत: अध्ययन के दौरान टोटीपोटेन्ट कोशिकाएँ उत्पन्न की जा सकीं जो कि मानव भ्रूण के 72 घंटे के विकास के बाद दिखती हैं।
  • अध्ययन के दौरान देखा गया कि चुहिये के शरीर के अंदर रिप्रोग्राम किए गए वयस्क कोशिकाएँ यदि दूसरे चुहियें के शरीर में प्रवेश करायी गयीं तो इसमें भ्रूण जैसी संरचना बनी।
  • शरीर के अंदर उत्पादित ips कोशिकाएँ भ्रूणीय स्तंभ कोशिकाओं से भी अधिक आरंभिक स्तर की होती है। अत: कहा जा सकता है कि रिजेनरेटिव मेडिसीन उपचार में यह उपयोगी होगा। ऐसे शोध से पार्किसन और मधुमेह जैसे रोगों का सहज उपचार किया जा सकेगा।
  • जबकि प्रयोगशाला में तैयार किए गए Ips कोशिकाएँ एवं भ्रूणीय स्तंभ कोशिकाएँ भी दूसरे चुहिये में भ्रूण सदृश्य संरचना नहीं बना सके।
  • शोधकर्ताओं के अनुसार, शरीर के अंदर होने वाले रिप्रोग्रामिंग के कारण टोटीपोटेन्सी की क्षमता आती है जो कि भ्रूणीय स्तंभ कोशिका या प्रयोगशाला में प्रोगाम किए गए Ips कोशिकाओं में अनुपस्थित रहते हैं।