Science and Technology: Objectives of Space Programme and Orbits of Satellites

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अंतरिक्ष (Space)

अंतरिक्ष कार्यक्रम के उद्देश्य (Objectives of Space Programme)

  • उपग्रह निर्माण, प्रक्षेपण के क्षेत्र में विकास करना और आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
  • दूरसंचार, टेलीविजिन प्रसारण, मौसम अध्ययन एवं संसाधन सर्वेक्षण तथा प्रबंधन के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी विकसित करना।
  • विकसित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर आधारित सेवाएँ उपलब्ध कराना व इसके कार्यान्वयन के लिए उपग्रहों, प्रक्षेपणयानों तथा संबद्ध भू-प्रणालियों का विकास करना।
  • भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम मुख्यत: उपयोगिता संचालित है तथा इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक-विकास सहयोग करना है।

उपग्रहों की कक्षाएँ (Orbits of Satellites)

ध्रुवीय कक्षा (Polar Orbit)

ध्रुवीय कक्षा में अंतरिक्ष यान किसी उपग्रह को उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव के ऊपर ले जाता है। प्रत्येक परिक्रमा में अंतरिक्ष यान पृथ्वी के ऊपर से विभिन्न बिन्दुओं से गुजरता है क्योंकि पृथ्वी स्वयं परिक्रमा कर रही होती है। ध्रुवीय कक्षा का उपयोग मुख्य रूप से वैज्ञानिक उपग्रहों के लिए किया जाता है, जो परिक्रमा करते हुए प्रतिदिन एक बार ध्रुवों के ऊपर से गुजरते हैं और साथ ही साथ वे प्रतिदिन पूरी पृथ्वी के चित्र भी भेज सकते हैं।

Illustration: ध्रुवीय कक्षा (Polar Orbit)

भू-स्थैतिक कक्षा (Geo-Synchronous Orbit)

भू-स्थिर कक्षा में परिक्रमा कर रहा अंतरिक्ष यान प्रतिदिन पृथ्वी की एक परिक्रमा करता है। यदि यान को विषुवत रेखा की दिशा में प्रणोदित किया जाये तो वह उत्तर दक्षिण की ओर गति किये बिना स्थिर रहता है, तब इस कक्षा को भू-स्थिर कक्षा कहते है। इसकी परिक्रमण काल 23 घंटे 56 मिनट और 4: 1 सेकेंड होता है। यदि कक्षा विषुवत रेखा की दिशा में हो और कक्षा वृत्तीय हो तो परिक्रमा कर रही वस्तु स्थिर प्रतीत होगी और तब उसे भू-स्थिर उपग्रह कहेंगे। एक भू-स्थिर कक्षा की ऊँचाई 36,000 किलोमीटर होती है। इस कक्षा में स्थित उपग्रहों का उपयोग संचार तथा मार्गदर्शन के लिए किया जाता है।

सूर्य समकालिक कक्षा (Sun-Synchronous Orbit)

इसका तात्पर्य यह है कि यदि उपग्रह की कक्षा का झुकाव सूर्य-पृथ्वी की रेखा के सापेक्ष सभी ऋतुओं में एक समान रहे तो इस कक्षा को सूर्य समकालिक कक्षा कहते हैं। इस उपग्रह की कक्षीय परिक्रमा का समय भी पृथ्वी की घूर्णन समय सीमा के बराबर ही होता है, जिससे प्रेक्षणों की तुलना की जा सकती है और उनके बीच तादात्म्य भी स्थापित हो पाता है।

उपग्रहों के प्रकार (Types of Satellites)

परिक्रमा पथ के मापदंडो के आधार पर उपग्रहों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  • निम्न भू-कक्षीय उपग्रह (Low-earth-orbit Satellite) -इस प्रकार के उपग्रह सामान्यत: एक अंडाकार कक्षा में 200 से 600 कि. मी. की सीमा में कार्यरत होते है। वर्तमान में अधिकांश प्रकार्यात्मक (Functional) उपग्रह इसी श्रेणी में आते हैं।
  • सौर-तुल्यकालिक कक्षीय उपग्रह (Sun-Synchronous Orbit Satellite) -इस तरह के उपग्रह निकट-वृत्तीय ध्रुवीय कक्षा में उत्तर से दक्षिण की ओर चलते हुए एक निश्चित ऊँचाई (500 - 1000 कि. मी.) पर अपना कार्य करते है। पी. एस. एल. वी. दव्ारा प्रक्षेपित भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आई. आर. एस.) इसी वर्ग में आते हैं।
  • भू-तुल्यकालिक उपग्रह (Geo-Synchronous Satellite) -ये उपग्रह एक वृत्ताकार विद्युवतीय कक्षा में 36,000 कि. मी. की निश्चित ऊँचाई पर 24 घंटे में एक बार पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। चूँकि पृथ्वी भी अपनी धुरी पर इतने ही समय में परिभ्रमण करती है, अत: ये उपग्रह स्थिर प्रतीत होते है। इनसेट श्रेणी के संचार उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं।