Science and Technology: Greenhouse Effect and Ozone Depletion

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हरित गृह प्रभाव तथा भूमंडलीय तापन (Greenhouse Effect & Global Warming)

IPCC Fourth Assessment Report: Climate Change 2007 (AR4)

वर्ष 2007 की अपनी रिपोर्ट में आई. पी. सी. सी. ने निम्नांकित तथ्यों को उजागर किया है।

  • 20वीं सदी के मध्य की तुलना में हाल के वर्षों में वैश्विक तापमान में लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई हैं।
  • यदि हरितगृह गैसों के उत्सर्जन को रोक भी दिया जाए तो भी कई शताब्दियों तक तापक्रम में वृद्धि तथा महासागरीय जल का बढ़ना जारी रहेगा।
  • प्राकृतिक रूप से जलवायु में होने वाला परिवर्तन लगभग 5 प्रतिशत होगा।
  • महासागरीय जल स्तर लगभग 18 - 59 सें. मी. बढ़ने की आशंका है।
  • गर्म हवाओें की उत्पत्ति में लगभग 90 प्रतिशत तक की वृद्धि की आशंका है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों, सूखा तथा उच्च ज्वार जैसे घटनाक्रमों में लगभग 90 प्रतिशत वृद्धि की आंशका है।

आई. पी. सी. सी. ने यह भी कहा है कि वर्ष 1750 की तुलना में कार्बनडायक्साइड, मिथेन तथा नाइट्‌स ऑक्साइड की सान्द्रता में मानव-जनित गतिविधियों से अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।

  • हाल में वैज्ञानिकां दव्ारा एक नए हरित गृह गैस की खोज की गई है। इलेक्ट्रॉनिक, हथियार निर्माण तथा अन्य सैन्य उद्योगों से उत्पन्न होने वाली इस गैस की प्रकृति सल्फरहेक्साफ्लोराइड की भांति है तथा इसे ट्राईफ्लोरोमिथाईल सल्फर पेंटाफ्लोराइड की संज्ञा दी गई है। वर्तमान में यह गैस समतामंडल तथा अंटार्कटिका क्षेत्र में बर्फ के अधोसंस्तरों में उपस्थित है। 1960 में इस गैस की न्यूनतम मात्रा वायुमंडल में पायी गयी थी, लेकिन वर्तमान मेंं यह मात्रा 4000 टन है तथा यह 6 प्रतिशत की चिंताजनक वार्षिक दर से वृद्धि कर रही है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार कार्बन डाईक्साइड की तुलना में इसके ताप अवशोषण की क्षमता 18000 गुना अधिक है। दूसरी ओर, क्लारोफ्लोरोकार्बन की तुलना में इस गैस के अणुओं की आयु दीर्घ है, जिसके फलस्वरूप ओजोन के विखंडन की आशंका में वृद्धि हुई है। वस्तुत: वायुमंडल में प्रवेश करने के उपरांत इस गैस के अणु 1000 वर्ष या उसके अधिक की अवधि के लिए अविखंडित अवस्था में रह सकते हैं। विलियम टी. स्टर्च के अनुसार, किसी हरितगृह गैस की भूमंडलीय तापन की क्षमता का अन्य गैसों के साथ सापेक्ष अध्ययन किया जाता है। यह क्षमता वस्तुत: किसी गैस की निश्चित मात्रा दव्ारा अवशोषित किए गए ताप के अनुपात से गैस विशेष की भूमंडलीय तापन की क्षमता का निर्धारण किया जाता है। एक अन्य सामयिक आंकड़े के अनुसार, कार्बन डाईक्साइड के समतामंडल में प्रवेश करने के उपरांत तापमान में कमी होती है तथा यह ओजोन विखंडन हेतु आवश्यक तापक्रम-1050c से 1100c तक शून्य हो सकती है। इस खोज के आधार पर ओजोन विखंडन तथा भूमंडलीय तापन की प्रक्रियाओं में अंतर स्थापित किया जा सकता है। कार्बन डाईक्साइड के इस विशिष्ट गुण के कारण इसका अधिक उत्सर्जन ओजोन विखंडन की दर में वृद्धि करने की क्षमता रखता है।

भूमि पर प्रभाव (Land on Impact)

  • वाष्पीकरण की उच्च दर के कारण मृदा की नमी में अप्रत्याशित कमी।
  • अन्त: सरण की न्यून दर से जल संतुलन समीकरण पर व्यापक प्रभाव तथा मृदा की उर्वरता में कमी।
  • प्राकृतिक निवास्य क्षेत्रों के संकुचन के कारण जैव संसाधनों के विलुप्त होने की आशंका।

जल पर प्रभाव (Impact on Water)

  • ध्रुवीय बर्फ के प्रगलन से महासागरों के जलस्तर तथा तापक्रम में वृद्धि।
  • तटीय क्षेत्रों का सागर में समावेश।
  • महासागरों के विस्तार से तटीय क्षेत्रों में पेय जल का प्रदूषण।

ओजोन विखंडन (Ozone Depletion)

  • ओजोन O3 एक हल्के नीले रंग की गैस है जो समतापमंडल में पाई जाती है। इसका मुख्य कार्य सूर्य की पराबैंगनी विकिरणों का अवशोषण करना है। वर्तमान में वायुमंडल में इसकी मात्रा 0.02 से 0.07PPM है लेकिन 30000 A Angstrom तक की विकिरणों का अवशोषण करने की क्षमता इस गैस में पायी गयी है। ओजोन के विखंडन से व्यापक स्तर पर तापक्रम परिवर्तन होते हैं जिसके फलस्वरूप जीवन समर्थक प्रणालियों पर कुप्रभाव परिलक्षित होते हैंं वस्तुत: समतापमंडल में ओजोन की उपस्थिति L1, L2 तथा L3 नामक तीन संस्तरों में होती है। इसमें L2 संस्तर की मुटाई सर्वाधिक है। मानव जनित ओजोन विखंडन का वैज्ञानिक अध्ययन 1970 में प्रारंभ किया गया था, लेकिन ओजोन की गत्यात्मक संकल्पना की सर्वप्रथम व्याख्या चेपमैन ने 1930 में ही की थी। चैपमेन के अनुसार ऑक्सीजन के अणुओं का विखंडन ब्रह्यांडीय विकिरणों Cosmic Rays के प्रभाव से होता है, जिसके फलस्वरूप ऑक्सीजन के परमाणु विमुक्त होते हैं। प्रत्येक परमाणु ऑक्सीजन के एक अणु से प्रतिक्रिया कर ओजोन का निर्माण करता है। इस कारण ओजोन के एक अणु में ऑक्सीजन के 3 परमाणु उपस्थित होते हैं। वर्तमान में चेपमैन की इस संकल्पना की प्रासंगिकता नहीं रह गई है। वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर यह स्पष्ट किया जा चुका है कि 75 से 85 प्रतिशत ओजोन विखंडन मानवजनित गतिविधियों दव्ारा होता है। 1920 एवं 1970 के मध्य जी. एम. बी. डाब्न दव्ारा ओजोन के अध्ययन के उपरांत ओजोन संस्तर की मुटाई की माप डाब्सन इकाई में की जाती है 1D. U = 0.4mm ।
  • मानवजनित गतिविधियों से विमुक्त हुए पदार्थ ओजोन क्षरण के लिए उत्तरदायी हैं। इन पदार्थों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) है। वायुमंडल में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में (CFC) के एक अणु का विखंडन होता है, जिससे क्लोरीन का एक परमाणु विमुक्त होता है। ओजोन का एक ऑक्सीजन परमाणु से प्रतिक्रिया कर यह क्लोरीन मोनोक्साइड का निर्माण करता है। इस प्रकार ओजोन का विखंडन हो जाता है। वैज्ञानिकों के एक समूह के अनुसार, समतापमंडलीय ओजोन का विखंडन क्लोरीन की अपेक्षा बोमीन से अधिक होता है। दूसरी ओर, पराबैंगनी विकिरणों की उपस्थिति में ओजोन का विखंडन आक्सीजन के एक अणु तथा एक परमाणु में होता हैं, जिसके पुनर्संयोजन से पुन: ओजोन का निर्माण होता है। विखंडन तथा पुनर्संयोजन की यह प्रक्रिया वैकल्पिक रूप से निरंतर होती रहती है। अंतत: आक्सीजन के दो अणुओं का निर्माण हो जाता है। ओजोन विखंडन की यह घटना वैज्ञानिकों तथा भूगोलविदों के लिए एक चुनौती है, क्योंकि सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक रूप से यह प्रतिक्रिया विपरीत दिशा में होती है। भौगोलिक दृष्टिकोण से अंटार्कटिक क्षेत्र में एक अंडाकार वातावर्त (Vortex) का निर्माण होता है, जिसका तापक्रम सामान्यत: 900c पाया गया है। इस तापक्रम पर वायु के संघनित होने से बादलों का निर्माण तथा बर्फ के रवों के विमुक्त होने की प्रक्रिया होती है। इन रवों के दव्ारा ओजोन विखंडन की प्रतिक्रिया हेतु आवश्यक आधार प्रदान किया जाता है, लेकिन इस तापक्रम पर वायु में उपस्थित नाइट्रोजन क्लोरीन के परमाणु के विमुक्त होने की प्रक्रिया का प्रतिरोध करता है। तापक्रम में वृद्धि के फलस्वरूप प्रकाश की उपस्थिति में (CFC) के विखंडन से क्लोरीन के परमाणु विमुक्त हो जाते हैं। सामयिक अनुसंधानों के अनुसार, ओजोन विखंडन हेतु अनुकूलतम तापमान -1050c से -1100c है। अंटार्कटिक क्षेत्र की तुलना में आर्कटिक क्षेत्र में अनुकूलतम तापमान के अभाव के कारण इस क्षेत्र में ओजोन विखंडन की संभावना से इंकार किया गया था। लेकिन 1999 की शीत ऋतु में आर्कटिक के क्षेत्र में कमोबेश 2 माह की अवधि तक अनुकूलतम तापमान की उपस्थिति ने ओजोन विखंडन की संभावना को प्रबल बना दिया है। इस अवधि में वस्तुत: ओजोन का विखंडन सर्वाधिक हुआ है।
  • कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि ओजोन का विखंडन स्वतंत्र तत्वों (Free radicals) जैसे हाइड्रोक्सिल (OH-) , नाइट्रिक, ऑक्साइड (NO-) , परमाणविक क्लोरिन (C1-) तथा परमाणविक ब्रोमिन (Br-) से होता है। ये सभी तत्व प्राकृतिक तथा मानव जनित दोनों ही स्रोतों से प्राप्त होते हैं। वर्तमान में OH- तथा NO- प्राकृतिक रूप से समतापमंडल में विद्यमान हैं लेकिन क्लोरिन तथा ब्रोमिन की मात्रा में जो अप्रत्याशित वृद्धि हुई है वह मानव जनित गतिविधियों से है।

अंतरराष्ट्रीय प्रयास (International Efforts)

ओजोन क्षरण की समस्या से संबंधित विषयों पर 1985 में सर्वप्रथम विएना में एक वैश्विक सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य अंटार्कटिक क्षेत्र में ओजोन छिद्र की पहचान करना था। विएना घोषणा पत्र में ओजोन क्षरण को रोकने हेतु तकनीकों एवं वैज्ञानिक अनुसंधानों पर विशेष बल दिया गया। इसके उपरांत 1987 में मॉट्रियाल प्रोटोकॉल 1990 में लंदन संशोधन तथा हेलसिंकी सम्मेलन एवं 1992 में कोपेनहेगन सम्मेलन का आयोजन किया गया। इन अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में CFC को ओजोन क्षरण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक मानकर इसके उत्पादन तथा उपयोग पर 2000 तक प्रतिबंध लगाने पर विशेष बल दिया गया। इसके अतिरिक्त, मिथाइल ब्रोमाइड तथा कार्बन टेट्रा क्लोराइड को भी ओजोन क्षरण करने वाले पदार्थो के रूप्ज्ञ में मान्यता प्रदान की गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनके उत्पादन एवं उपयोग को प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव भी किया गया। मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल के अनुमोदन के एक दशक के उपरांत भी ओजोन क्षरण करने वाले पदार्थों का वायुमंडल में प्रवेश जारी है। नि: संदेह वैश्विक स्तर पर CFC के उपयोग को कम करने तथा उसके एक विकल्प की खोज करने के प्रयास किए गए हैं ताकि ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों के उपयोग पर नियंत्रण रखा जा सके। वैज्ञानिकों के अनुसार, 1995 से 2005 के मध्य CFC का आधिकारिक उत्पादन 2 करोड़ दस लाख टन हो जाएगा। अंतराष्ट्रीय विधि के अंतर्गत सभी राष्ट्रों का दायित्व ओजोन विखंडन को रोकना है। इस संबंध में मानव जनित गतिविधियों से होने वाले ओजोन विखंडन तथा उसके कुप्रभावों को कम करने हेतु विशेष प्रावधानों पर विएना घोषणापत्र के सुझावों के अनुरूप कार्य किया जा रहा है। 1972 में स्टॉकहोम में संयुक्त राष्ट्र मानव पर्यावरण सम्मेलन के अंतर्गत घोषणा पत्रों का अनुमोदन किया गया था, जिसके तहत हानिकारक पदार्थों जिनसे अनावश्यक ताप की उत्पत्ति होती है, को नियंत्रित करने पर बल दिया गया था। इसके अतिरिक्त, पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाले सभी पदार्थों के उपयोग पर नियंत्रण रखने हेतु भी प्रयास करने पर बल दिया गया था। हाल ही में अमेरिका सहित विश्व के कई देशों में CFC की कालाबाजारी की घटनाएँं परिलक्षित हुई हैं। इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय विधानों की सहायता से समस्या पर नियंत्रण रखने हेतु योजनाएंँ बनाई जा रही हैं।