Science and Technology: Science & Technology in the Rea of Globalisation

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भूमंडलीकरण के काल में विज्ञान और प्रौद्योगिकी (Science & Technology in the Rea of Globalisation)

  • जैसा कि आगे के अध्यायों में विस्तार से उल्लेख किया गया है, सामाजिक-आर्थिक विकास तथा मानव विकास के दृष्टािकोण से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्व का पर्याप्त विस्तार हुआ है। इस संदर्भ में विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सरकार ने स्वतंत्रता प्राप्ति के तत्काल बाद से ही विशेष प्रयास किये हैं। इन प्रयासों को पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से सफल बनाने के प्रावधान भी किये गये हैं। इस अध्याय में भूमंडलीकण के काल में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास से संबंधित तथ्यों का संक्षिप्त विवरण दिया गया।
  • यह सर्वविदित है कि भूमंडलीकरण और आर्थिक उदारीकरण की संकल्पनाओं में प्रशुल्क दरों में कमी करने का लक्ष्य अंतनिर्हित है। इस कारण सरकारी कार्यक्रमों में स्वदेशी तकनीकों के विकास के दृष्टिकोण से नये अनुसंधानों पर विशेष बल दिया जा रहा है।
  • भूमंडलीकरण की शक्तियों का प्रादुर्भाव विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं की अंत: क्रिया के कारण हुआ है। इसके फलस्वरूप, व्यापार और बाजार के नये मानक भी विकसित हुये हैं। आर्थिक संवृद्धि तथा व्यापार एवं बाजार के इन मानकों के निर्धारण में वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय प्रक्रियाओं की विशिष्ट भूमिका है। लगभग सभी उत्पादों और सेवाओं में विस्तार के लिए प्रौद्योगिकीय प्रगति का योगदान बढ़ रहा है। यह भी आशा की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में भी तीव्र गति से होने वाले वैज्ञानिक परिवर्तनों के कारण उत्पादों और सेवाओं का और भी विस्तार होगा। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि प्रौद्योगिकी नवाचारों तथा बाजारी प्रक्रियाओं में आगामी वर्षों में निवेश की मात्रा में वृद्धि होने की प्रबल संभावना है।
  • जैसा कि हम जानते हैं, भारत सरकार ने समानांतर रूप से उद्योग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा अवसरंचना के क्षेत्रों में निवेश किया है। इस निवेश के कारण औद्योगिक क्षेत्र में तीव्र गति से प्रगति हुई है। यह प्रगति आयतित तकनीकों और उपकरणों पर व्यापक रूप से निर्भर करती है। दूसरी ओर, यह प्रगति, अनुसंधान संस्थानों दव्ारा आधारित अनुसंधानों पर दिये जाने वाले बल पर भी निर्भर करती है। लेकिन आरंभिक चरणों में राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास केन्द्रों तथा औद्योगिक विकास के मध्य एक बड़ी खाई निर्मित थी। इस खाई को पाटने के लिए कई कार्यक्रमों का क्रियान्वयन भी किया जा रहा है। हाल के वर्षों में प्रौद्योगिकी अनुसंधानों पर बल देने के लिए विशेष कोष, मानव संसाधन तथा उपयुक्त वातावरण की सहायता दी जा रही है। इन अनुसंधानों के माध्यम से प्रौद्योगिकीय नवाचारों तथा उनके व्यावसायीकरण को सुनिश्चित किया जाएगा।

भूमंडलीकरण के इस युग में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए मानवीय दक्षता की अनिवार्यता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रौद्योगिकीय नीति वक्तव्य में तकनीकी संस्थानों, पॉलिटेक्निकों तथा व्यावसायिक संस्थानों के आधार का विस्तार करने का प्रावधान है। इसी क्रम में वैज्ञानिक विकास के क्षेत्र में औद्योगिक क्षेत्र की सहभागिता भी अपेक्षित है। जहाँं तक अनुसंधान और विकास का प्रश्न है, कार्यक्रमों में निम्नांकित पक्षों को शामिल किया गया है:

  • औद्योगिक क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की क्षमताओं की पहचान।
  • देश के आर्थिक विकास और संवृद्धि के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आधार का विस्तार।
  • निजी और सार्वजनिक निवेश में पर्याप्त वृद्धि।
  • ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों के अन्वेषण, अनुप्रयोग तथा संरक्षण के लिए ऊर्जा-संबद्ध तकनीकों का विकास।
  • शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पोषण और स्वास्थ्य स्तरों को ऊँचा उठाने के लिए नई तकनीकों के विकास को प्रोत्साहन।

इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विज्ञान और तकनीक के माध्यम से मानव संसाधन विकास पर विशिष्ट बल दिया जा रहा है। साथ ही देश के विभिन्न क्षेत्रों से प्रतिभाओं की खोज के लिए भी विशेष प्रयास किये जा रहे हैं ताकि उन्हें वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधान कार्यक्रमों में सहभागी बनाया जा सके।

  • आलोचकों के अनुसार, भूमंडलीकरण ने गरीबी के विस्तार में योगदान दिया है। गरीबी का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक है। भारत की कुल जनसंख्या का अधिकांश भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है। भारत के गांवों की समस्याओं में बेरोजगारी, आर्थिक विषमता, अनुपयुक्त तकनीकों का उपयोग, निरक्षरता, न्यून स्वास्थ्य सेवाएं तथा असुरक्षित पेय जल प्रमुख हैं। इन सभी समस्याओं का निराकरण नई तकनीकों के दव्ारा किया जा सकता है। इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करने वाली संस्थाओं में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (Council of Scientific and Industrial Research, CSIR) काउंसिल फॉर एडवासमेंट ऑफ पीपुल्स एक्शन एंड रुरल टेक्नोलॉजी (Council for Advancement of People՚s Action and Rural Technologies, CAPART) तथा राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास निमग (National Research and Development Corporation) प्रमुख हैं। इस दिशा में कई गैर-स्वयंसेवी संगठनों दव्ारा भी कार्य किये जा रहे हैं। ग्रामीणों को नये वैज्ञानिक विकास की जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से ग्रामीण क्षेत्रों में समय-समय पर विज्ञान प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है। साथ ही, संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए कई राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं। ऐसे कार्यक्रमों में संवर्द्धित मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम, राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम, राष्ट्रीय घेंघा उन्मूलन कार्यक्रम आदि प्रमुख हैं।
  • कृषि में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सहयोग से न केवल कृषकों की तकनीकी जागरूकता बढ़ाई है बल्कि इससे कृषि उत्पादन में भी अप्रत्याशिक वृद्धि हुई है। ग्रामीण विकास के दृष्टिकोण से फसल पूर्वानुमान के लिए प्रयुक्त दूर संवेदन तथा उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के विकास संबंधी तकनीकों का महत्व अति विशिष्ट सिद्ध हुआ है। इसके अलावा, सरकार ने ग्रामीण विकास की प्रक्रिया को तेज करने के उद्देश्य से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का संबंध राष्ट्रीय साक्षरता मिशन तथा रोजगारोन्मुखी कार्यक्रमों के साथ करने का प्रावधान किया है। इससे निश्चित रूप से दक्षता उन्नयन को बढ़ावा मिलेगा जो सकल ग्रामीण उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होगा।
  • स्वदेशी तकनीकों का विकास भी भारत के विकास का एक महत्वपूर्ण आयाम है। इस कार्य के लिए वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद को उत्तरदायी बनाया गया है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि दसवीं योजना में इस बात पर बल दिया जा रहा है कि नवीं योजना में वैज्ञानिक विकास के जो कार्यक्रम आरंभ किये गये थे उन्हें चालू रखा जाना है। इनमें से कुछ कार्यक्रमों का संक्षिप्त उल्लेख आगे किया गया है।
  • यहांँ यह समझना आवश्यक है कि वैज्ञानिक और तकनीकी विकास किस प्रकार भारत के सामाजिक-आर्थिक ढांचे को सुद़ृढ़ बनाने में सहायक है। ऐसे सभी कार्यक्रमों का मूल आधार जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना तथा अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण का निर्माण है। जीवन की गुणवत्ता के बिना दक्षता उन्नयन संभव नहीं होता। इस आधार पर वैज्ञानिक कार्यक्रमों को पूर्णत: तार्किक कहा जा सकता है। सामाजिक आर्थिक विकास को ठोस आधार देने में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इस दृष्टिकोण से ऐसे कार्यक्रमों के तहत महिलाओं के लिए कई तकनीकी पार्कों की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त आवासन, स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार, जल संसाधन प्रबंधन, पारिस्थतिकी संरक्षण तथा विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में जैव परिमाण का सतत्‌ उपयोग आदि कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहांँ विज्ञान का प्रयोग किया जा रहा है।
  • भूमंडलीकरण का लाभ लेते हुये भारत सरकार ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय संधियों तथा समझौतों पर बल दिया है। विशेषकर, दक्षेस तथा आसियान के देशों के साथ ऐसी संधियां की जा रही हैं। वास्तव में, भारत ने लगभग 56 देशों के साथ विज्ञान के क्षेत्र में दव्पक्षीय संबंध स्थापित किये हैं। हाल ही में, भारत तथा अमेरिका ने संयुक्त रूप से एक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी फोरम की स्थापना की है। इन प्रयासों से आने वाले वर्षों में भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का स्तर विश्व के किसी भी विकसित देश के समकक्ष होगा।

भारत के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग ने टेक्नोलॉजी प्रोमोशन, डेवलपवमेंट एंड यूटिलाइजेशन नामक कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया है, जिसके निम्नांकित प्रमुख अवयव हैं:

  • उच्च स्तरीय प्रभाव वाले उत्पादों तथा प्रक्रियाओं के व्यावसायीकरण के लिए स्वदेशी क्षमता का निर्माण।
  • घरेलू उपयोग तथा निर्यात की आवश्यकताओं के अनुरूप परामर्शी क्षमताओं का सुदृढ़ीकरण।
  • तकनीक हस्तांतरण के लिए राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं प्रक्रियाओं का समर्थन।
  • अंकीय सूचना सेवाओं का प्रभावकारी अनुप्रयोग।
  • देश भर में विज्ञान और तकनीक के विकास के लिए आवश्यक अवसरंचनाओं का सुदृढ़ीकरण।

स्वदेशी तकनीकों के विकास के दृष्टिकोण से एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यक्रम के रूप में प्रोग्राम एम्ड ऐट टेक्नोलॉजिकन सेल्फ रिलायंस (Programme Aimed at Technology Self-Reliance, PATSER) का क्रियान्वयन किया जा रहा है।

  • इस कार्यक्रम का आरंभ 1990 के दशक में किया गया। जिसका मूल उद्देश्य औद्योगिक परियोजनाओं को समर्थन प्रदान करना है। अब तक ऐसी लगभग 120 परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान की जा चुकी हैं इस कार्यक्रम पर वार्षिक व्यय औसतन 6 करोड़ रुपए का है। कार्यक्रम के तहत पेटेंट के लिए कुल 20 आवेदन किये गये हैं। यह आशा व्यक्त की गई है कि वर्ष 2005 के अंत तक कार्यक्रम के तहत स्वीकृत परियोजनाओं पर लगभग 200 करोड़ रुपए का व्यय किया जाएगा।
  • यह विदित है कि स्वदेशी तकनीक के विकास में उद्यमशीलता का विकास अनिवार्य है। इस संदर्भ में विभाग दव्ारा उद्यमी प्रवर्तन कार्यक्रम क्रियान्वित किया जा रहा है। कार्यक्रम को प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान तथा मूल्यांकन परिषद् (Technology Information Forecasting and Assessment Council, TIFAC) दव्ारा समर्थन प्रदान किया जा रहा हैं। परिषद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन एक स्वायत संस्था के रूप में कार्यरत है। वर्ष 1992 से क्रियान्वित किये जाने वाले होम ग्रोन टेक्नोलॉजी (Home Grown Technology, HGT) नामक कार्यक्रम के तहत कुल 50 परियोजनाओं को परिषद दव्ारा स्वीकृति प्रदान की गई है।
  • स्वदेशी तकनीक के विकास के क्षेत्र में वर्ष 1996 से प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (Technology Development Board, TDB) कार्य कर रहा है। बोर्ड का मूल उद्देश्य उन औद्योगिक इकाइयों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है जो स्वदेशी तकनीकों के व्यावसायिक उपयोग के लिए अथवा आयातित तकनीकों के घरेलू उपयोग के लिए प्रयासरत हैं।