Science and Technology: Role of Space Science & Technology in National Development

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राष्ट्र विकास में अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका (Role of Space Science & Technology in National Development)

  • वर्ष 1962 से ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ने संचार, कृषि, आपदा प्रबंधन तथा संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह भी सत्य है कि तेजी से बढ़ती हुई आर्थिक और अन्य आवश्यकताओं ने अंतरिक्ष विज्ञान के और भी प्रभावकारी उपयोग की अनिवार्यता उत्पन्न कर दी है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष डा. के. कस्तूरीरंगन के शब्दों में, ‘व्यावसायीकरण के कारण बढ़ती हुई आवश्यकताओं ने अंतरिक्ष विज्ञान के अनुप्रयोगों का व्यापक विस्तार किया है। विशेषकर अंतरिक्ष-आधारित संचार ने अंतरिक्ष विज्ञान को आम आदमी तथा उद्योगों के निकट लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।’
  • अंतरिक्ष विज्ञान की भूमिका कृषि उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने में भी रही है। विशेषकर दूर संवेदन तथा मौसम पूर्वानुमान तकनीकों का प्रयोग कर इस दिशा में कार्य किये जाते हैं।
  • आपदा प्रबंधन में भी अंतरिक्ष-आधारित सुविधाओं का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए देश भर में लगभग 250 बाढ़ पूर्वानुमान केन्द्र स्थापित किये गये हैं। ये केन्द्र चक्रवात-संभावित भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्रों में कार्यरत हैं।
  • फसल पूर्वानुमान अंतरिक्ष विज्ञान के उपयोग का अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इसके लिए चलाये जाने वाले कार्यक्रम में फसल क्षेत्रफल तथा मृदा के गुणों का विश्लेषण किया जाता है।
  • पर्यावरणीय विकास में भी अंतरिक्ष विज्ञान का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके लिए उपग्रहों दव्ारा वन सर्वेक्षण का कार्य किया जाता है।
  • भारतीय दूर संवेदी उपग्रहों की एक विशिष्टता यह है कि इनसे प्राप्त सूचनाओं का उपयोग समन्वित सतत्‌ विकास मिशन (Integrated Mission for Sustainable Development, IMSD) में किया जाता है। इसका उद्देश्य सूक्ष्म स्तर पर विकास को प्रोत्साहित करना है।
  • हालांकि अंतरिक्ष विज्ञान को वैज्ञानिक विकास के लिए प्रोत्साहित किया जाता है लेकिन अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में भी इंसान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी क्रम में अंतरिक्ष निगम की स्थापना की गई है जिसने विदेशी मुद्र्रा अर्जन की प्रक्रिया में उत्प्रेरक का कार्य किया है।

अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station)

  • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण का कार्य 1998 से आरंभ हुआ था जिसके 2011 के अंत तक पूरा हो जाने की आशा है। निम्न भू-कक्षा में स्थापित यह उपग्रहीय स्टेशन 278 किमी. से 460 किमी. के बीच स्थापित है (औसत 360 किमी.) ।
  • इस परियोजना का मूल उद्देश्य गुरूत्वीय दशाओं में भौतिक, रसायनिक, जैविक, खगोलीय तथा मौसम संबधी अध्ययन करना है। हाल ही में यूरोप की नैशनल इंस्टीट्‌यूट ऑफ हेल्थ संस्था दव्ारा विशेष वित्तीय सहायता देकर सूक्ष्म जैविकी के अध्ययन को प्रोत्साहित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य मानव स्वास्थ्य के लिए संभावित प्रयोगों का अध्ययन है।
  • मई 2010 तक इस स्टेशन में कुल 14 अवयव (माड्‌यूल) कार्यरत थे। इसके अतिरिक्त कई प्रयोगशालाएं भी इससे जुड़ी हुई है। 1 नवम्बर 2010 को Leonardo नामक एक वैज्ञानिक माड्‌यूल भेजा जाएगा जो इटली दव्ारा निर्मित है जो अमेरिका दव्ारा प्रचालित होगा। इसी प्रकार दिसंबर 2011 में रूसी मॉड्‌यूल नौका का भी प्रक्षेपण किया जाएगा। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन परियोजना में अमेरिका (नासा) यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, रूस, जापान, कानाडा भागीदार हैं। यह अंतरिक्ष स्टेशन अंतरिक्ष पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

स्डुड सैट (Stud Set)

देशभर में स्नातक स्तर तक छात्रों दव्ारा संकलित, विकसित तथा संचालित इस उपग्रह का प्रक्षेपण (PSLV-15) दव्ारा 12 जुलाई, 2010 को किया गया था तथा इसे सूर्य तुल्य कालिक कक्षा में स्थापित किया गया है। 6 माह के जीवनकाल का यह उपग्रह एक प्रायोगिक उपग्रह है जिसका मुख्य उद्देश्य निचले स्तर पर उपग्रहों के विकास और ऐसे अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए एक संपर्क के रूप में कार्य करना हैं।

जुगनू (Firefly)

कानपुर स्थित ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान’ दव्ारा विकसित यह एक दूर संवेदी नैनो उपग्रह है जिसका प्रक्षेपण न्यून भू-कक्षा में PSCV दव्ारा इस वर्ष के अंत तक किया जाएगा। इस उपग्रह का मुख्य कार्य आपदाओं पर निगरानी रखना और कृषि संबंधित सूचनाएँं संकलित करना हैं।

प्रथम (First)

भारत दव्ारा विकसित किया जाने वाला यह पहला आयन मंडलीय उपग्रह होगा। जिसका उद्देश्य आयन मंडल में उपस्थित इलेक्ट्राना की संख्या का अध्ययन करना है। स्टुडेंट सेटेलाइट इनिसिएटीव (छात्र उपग्रह पहल) नामक कार्यक्रम के तहत इसका विकास किया गया है। जुलाई 2010 से इसके परीक्षण की तैयारी आरंभ की गयी है। इस संबंध में कई परीक्षण किए गए हैं।

आइस मिशन सैटेलाइट (Ice Mission Satellite)

  • 8 अप्रैल 2010 को यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी दव्ारा क्रायोसेट-2 नामक उपग्रह कजाकिस्तान से प्रक्षेपित किया गया था। जिसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर उपस्थित बर्फ तथा हिमनदों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अध्ययन करना है। विशेषकर ध्रुवीय हिमनदों के अध्ययन के साथ-साथ यह हिमनदों के पिघलने की दर और उसकी प्रक्रियाओं का अध्ययन करेगा। उल्लेखनीय है कि यह उपग्रह अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के क्षेत्रों में अध्ययन को प्राथमिकता देगा। हाल ही में ग्रीनलैंड में लगभग 206 किमी. क्षेत्रफल वाला हिमनद का एक टुकड़ा मुख्य हिमनद से अलग हो गया है। इस क्षेत्र में किए गए अध्ययनों में यह उल्लेखित है कि ग्रीनलैंड में हिमनदों के पिघलने की दर अपेक्षाकृत अधिक हो गयी है जिससे सागर का जलस्तर लगभग 7 मी. उच्च हो गया है।
  • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी दव्ारा 2005 में ही क्रायोसेट का प्रक्षेपण किया गया था, जिसकी अध्ययन की सफलता दर को देखते हुए मार्च 2009 में नामक Gravity Field and Steady State Ocean Circulation Explorer (GOCE) मिशन तथा नवंबर, 2009 में (SMOS) Soel Moisture and Ocean Salinity Mission में भेजे जाने के बाद इस वर्ष क्रायोसेट-2 का प्रक्षेपण किया गया।

इसरो की नवीनतम गतिविधियाँ (ISRO՚s Latest Activities)

  • वर्ष 2011 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ने उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की, जिसमें श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक रॉकेट की तीन सफल उड़ाने शामिल हैं जिन्होंने एक भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह रिसोर्ससैट-2 एक विज्ञान उपग्रह यूथसैट, ऊष्णकटिबंधीय जलवायु के अध्ययनार्थ एक भारत -फ्रेंच उपग्रह, मेघा-ट्रॉपिक्स और भारत के संचार उपग्रह जीसैट-12 को कक्षा में स्थापित किया। एक अन्य भारतीय उन्नत संचार उपग्रह जीसैट-8 को यूरोपीय प्रमोचक रॉकेट एरियाने-5 का उपयोग करते हुए फ्रेन्च गियाना से प्रमोचित किया। ये पाँच उपग्रह सुचारू रूप से कार्य कर रहे हैं और इन्होंने अंतरिक्ष उपयोग तथा वैज्ञानिक अध्ययन हेतु हमारी राष्ट्रीय क्षमता में महत्वपूर्ण रूप से वृद्धि की है।
  • अप्रैल 20,2011 को प्रमोचित रिसोर्ससैट-2 भारत तथा विश्व के प्रयोक्ता समुदाय को आँकड़ों की निरंतरता प्रदान करने हेतु रिसोर्ससैट-1 का अनुवर्ती मिशन है। इसमें रिसोर्ससैट-1 के जैसे तीन प्रकाशीय सुदूर संवेदन नीतभार-रेखीय प्रतिबिंबन स्वत: क्रमवीक्षक-3, रेखीय प्रतिबिंबन स्वत-क्रमवीक्षक-4 तथा उन्नत विस्तृत क्षेत्र संवेदक हैं। यह उपग्रह, जहाजों की स्थिति, गति तथा अन्य सूचना प्राप्त करने के लिए अति उच्च विभेदन बैंड में जहाज की निगरानी हेतु स्वचालित सूचना प्रणाली नामक एक अतिरिक्त नीतभार का भी वहन करता है। रिसोर्ससैट-1 की तुलना में, रेखीय प्रतिबिंबन स्वत: क्रमवीक्षक-4 बहुस्पेक्ट्रमी प्रमार्ज को 70 कि. मी. तक बढ़ाया गया हैंं रिसोर्ससैट-2 में नीतभार इलेक्ट्रॉनिकी के लघुकरण सहित उचित परिवर्तन किये गये हैं।
  • यूथसैट, भारत-रूसी सहयोगी प्रयास- भारत का प्रथम लघु उपग्रह है जो भौमिक ऊपरी वायुमंडल के वैज्ञानिक अध्ययन हेतु दो भारतीय उपकरणों के साथ सौर विकिरण मापन हेतु एक रूसी उपकरण का वहन करता है।
  • मेघा-ट्रॉपिक्स (संस्कृत में मेघा का अर्थ है बादल और फ्रेंच में ट्रॉपिक्स का अर्थ ऊष्णकटिबंध है) संवहनी प्रणाली के काल चक्र और ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वायुमंडल की संबंधित ऊर्जा एवं आर्द्रता अंश (बजट) में उनकी भूमिका को समझने में भारत-रूसी संयुक्त उपग्रह मिशन है। इस उपग्रह को अक्टूबर 12,2011 को पी. एस. एल. वी 18 दव्ारा प्रमोचित किया गया था।
  • जीसैट-12 उपग्रह को 12 विस्तारित सी बैंड प्रेषानुकारों के साथ 8 वर्ष की मिशन कालावधि के लिए डिज़ाइन किया गया है और 830 पूर्व देशांतर पर स्थापित किया गया है। नीतभार की कक्षीय जाँच पूरी की गई है और उपग्रह को प्रचालनात्मक घोषित किया गया हैं। जीसैट-12 दूर-चिकित्सा, दूर-शिक्षा तथा आपदा प्रबंधन सहायता के क्षेत्र में अंतरिक्ष आधारित उपयोगों को बढ़ाएगा।
  • भारत का उन्नत संचार उपग्रह, जीसैट-8 जो के. यू. बैंड में 24 उच्च पावर के प्रेषानुकरों और दो चैनल वाले एल। एवं एल 5 बैंडों में प्रचालित जी. पी. एस. आधारित भू संवर्धित नौवहन (गगन) नीतभार का वहन करता है, को 550 पूर्व देशांतर के अभिप्रेत भूस्थिर कक्षीय स्थान पर स्थापित किया गया। इस प्रेषानुकर ने इन्सैट प्रणाली में क्षमता का संवर्धन किया है, जबकि गगन नीतभार उपग्रह आधारित संवर्धन प्रणाली प्रदान करता है जिसके जरिये जी. पी. एस. उपग्रह से प्राप्त अवस्थिति सूचना की परिशुद्धता में सुधार किया गया है।
  • नवंबर, 2011 में इन्सैट-2ई की समाप्ति के बाद, इसरो में 8 संचार उपग्रह, 2 मौसमविज्ञानीय उपग्रह, 10 भू प्रेक्षण उपग्रह तथा 1 विज्ञान उपग्रह का समूह है।
  • साथ ही, यह उल्लेखनीय है कि दो उपग्रह जुगूनू (आई. आई. टी. कानपुर से) और (एस. आर. एम. विश्वविद्याल, चेन्नई से) जिन्हें भारतीय विद्यार्थियों दव्ारा बनाया गया। सह-पैसेंजर के रूप में और दो विदेशी उपग्रह एक्स-सैट तथा वेसेलसैट को भी वर्ष 2011 में पी. एस. एल. वी. दव्ारा सफलतापूर्वक प्रमोचित किया गया।