सरकार दव्ारा दालों के बफर (मध्यवर्ती) स्टॉक (भंडारण) में वृद्धि (Increase in Pulses of Buffer Stock by Government) for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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सुर्ख़ियों में क्यों?

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने दालों के बफर स्टॉक को दोगुने से अधिक बढ़ा कर उसे 8 लाख टन से 20 लाख टन करने के फैसले को मंजूरी दे दी।

महत्व

  • इससे दालों की खुदरा कीमतों में उछाल के मामलें में सरकार के हस्तक्षेप और नियंत्रण तथा मांग एव आपूर्ति के बीच बार-बार आने वाले अंतर की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी।
  • इससे बफर स्टॉक में वृद्धि कर इसे घरेलू खपत के कम-से-कम 10 प्रतिशत तक लाने में मदद मिलेगी।
  • इससे दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिए घरेलू किसान प्रोत्साहित होंगे।
  • यह दकम जमाखोरों को भंडारण करने से रोकेगा और दालों के मूल्यों में कृत्रिम उछाल से राहत दिलाएगा।

साधन

  • ‘मूल्य स्थिरीकरण कोष’ योजना के माध्यम से वित्तीयन।
  • केन्द्रीय एंजेसियों (शाखा) (एफसीआई, एनएएफईडी और एसएफएसी) या राज्य सरकारों दव्ारा खरीद।
  • बाजार मूल्य अथवा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में जो भी उच्च है उसके आधार पर खरीद।
  • 20 लाख टन के बफर स्टॉक में 10 लाख टन की घरेलू खरीद शामिल होगी और शेष भाग विभिन्न सरकारों के मध्य होने वाले अनुबंधों तथा वैश्विक बाज़ार से तात्कालिक खरीद दव्ारा पूरा किया जाएगा।

पूसा अरहर 16

सुर्ख़ियों में क्यों?

  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों दव्ारा एक उच्च पैदावार वाली अरहर की किस्म, पूसा अरहर 16 का विकास किया गया है।
  • इस नई किस्म के, जनवरी 2017 से उत्पादन के लिए व्यावसायिक रूप से प्रयोग किए जाने की आशा है।

पृष्ठभूमि

  • भारत दाल का सबसे बड़ा उत्पादक और आयातक है।
  • अरहर या तुअर भारत में उपभोग की जाने वाली सर्वप्रमुख दालों में से एक है।
  • अपर्याप्त उत्पादन के कारण वर्ष 2015 में अरहर की कीमत 200 रुपये/किलोग्राम तक पहुँच गयी थी। फलस्वरूप आयात में वृद्धि हुई।

लाभ

  • वर्तमान में प्रयुक्त किस्मों की 160 - 270 दिनों की परिपक्वता अवधि के बजाय इस नयी किस्म की परिपक्वता अवधि 120 दिनों की हे।
  • इसे जल की कम आवश्यकता होती है और साथ ही यह यंत्रीकृत कटाई के लिए भी उपयुक्त है।
  • वर्तमान में प्रचलित किस्मों (पौधे की ऊंचाई 2 मीटर) की तुलना में नयी किस्म (97 सेमी-120सेमी) की अत्यधिक कम होने के बावजूद, यह (नयी किस्म) प्रचलित किस्मों की तरह ही प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल पैदावार देती है। यह उच्च पैदावार वस्ततु: उच्च घनत्व वाले रोपण के परिणामस्वरूप है।
  • पारंपरिक किस्मों में फूल एक साथ फली नहीं बनाते हैं, जबकि पूसा अरहर-16 में समकालिक परिपक्वता पाई जाती है। एक साथ परिपक्व होने के कारण कटाई करना आसान हो जाता है।
  • यह पंजाब जैसे गहन कृषि वाले राज्यों और साथ ही मध्य भारत के वर्षा सिंचित क्षेत्रों दोनों के लिए उपर्युक्त है।
  • यह नयी किस्म भारत को अगले 2 - 3 वर्षों में दाल की पैदावर में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद कर सकती है।
  • पर्याप्त उत्पादन मांग-आपूर्ति के अंतर को कम करने में मदद कर सकती है और मुद्रास्फीति से चिंतित नीति निर्माताओं को राहत प्रदान कर सकती है।