ब्रिटिश प्रशासक एवं उनकी नीतियाँ (British Administrators and Their Policies) Part 1for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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लार्ड लिटन ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: ब्रिटिश प्रशासक एवं उनकी नीतियाँ (British Administrators and Their Policies) Part 1

लार्ड लिटन को ओवन मैरिडिथ के नाम से भी जाना जाता है। 1876 में लिटन भारत का वायसराय बन कर आया। वह एक सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, लेखक एवं साहित्यकार था।

लिटन ने मुक्त व्यापर को प्रोत्साहन देते हुए इंग्लैंड की सूती मिलों (कारखाना) को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से कपास पर लगे आयात शुल्क को कम कर दिया। उसने करीब 29 वस्तुओं पर से आयात कर हटा दिया। 1876 - 78 में उसके समय में बंबई, मद्रास, हैदराबाद, पंजाब, मध्य भारत आदि में भयानक अकाल पड़ा। लगभग 50 लाख लोग भूख के कारण मारे गए। लिटन ने अकाल के जाँच के लिए रिचर्ड स्ट्रेची की अध्यक्षता में एक अकाल आयोग गठित की। आयोग ने असमर्थ व्यक्तियों की सहायता के लिए प्रत्येक जिले में एक अकाल कोष खोलने का सुझाव दिया। अकाल की भयानक स्थिति के बाद दिल्ली में 1 जनवरी, 1877 को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को कैसर-ए-हिन्द की उपाधि से सम्मानित करने के लिए दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया। मार्च 1878 में लिटन ने वर्नाक्यूलर प्रेस (मुद्रण यंत्र) अधिनिमय ′ पारित कर भारतीय समाचार पत्रों पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया। इस अधिनियम के अंतर्गत अनुचित प्रकाशन को रोकने के लिए मजिस्ट्रेटों (न्यायधशों) को व्यापक अधिकार मिल गया। लिटन के समय में ही 1878 का भारतीय शस्त्र अधिनियम पारित हुआ, इस अधिनियम के तहत बिना लाइसेंस (अधिकार) के कोई व्यक्ति न तो शस्त्र रख सकता था न ही व्यापार कर सकता था। यूरोपीय, एंग्लो-इंण्डियन (भारतीय) तथा कुछ विशिष्ट सरकारी अधिकारी इस अधिनियम की सीमा से बाहर थे।

1879 में लार्ड लिटन ने वैधानिक जनपद सेवा के अंतर्गत ऐसे नियम बनाये जिसमें सरकार को कुछ उच्च कुल के भारतीयों को वैधानिक जनपद सेवा में नियुक्ति का अधिकार मिला। ये नियुक्तियां प्रांतीय सरकारों की सिफारिश पर भारत सचिव की स्वीकृति से की जानी थी। इनकी संख्या संभावित जनपद सेवा की नियुक्तियों का केवल 1⟋6 भाग होनी थी। परन्तु लिटन का यह नियम भारतीयों को प्रभावित न कर सका, परिणामस्वरूप करीब 8 वर्ष के बाद यह नियम निष्प्रभावी हो गया। लिटन भारतीय सिविल सेवा में भारतीयों के प्रवेश को प्रतिबन्धित करना चाहता था, परन्तु भारत सचिव की सहमति न होने पर परीक्षा की अधिकतम आयु को 21 से घटा के 19 वर्ष कर दिया। लिटन की गलत नीतियों के कारण हुए दव्तीय आंग्ल-अफगान युद्ध में आंग्ल सेनाएं बुरी तरह असफल रहीं। उसने अलीगढ़ में एक ‘मुस्लिम एंग्लो प्राच्य महाविद्यालय’ की स्थापना भी की।