आदिवासी विद्रोह (Tribal Rebellion) Part 2 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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विद्रोह का स्वरूप ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: आदिवासी विद्रोह (Tribal Rebellion) Part 2

आदिवासियों का संगठन वर्गीय आधार पर नहीं बल्कि जातीय आधार पर था। आदिवासी संथाल, कोल, मुंडा आदि के रूप में ही संगठित थे। उनकी एकजुटता काफी मजबूत थी और उनके बीच आपसी संघर्ष नहीं हुए। पर आदिवासी सभी बाहरी लोगों को अपना दुश्मन नहीं मानते थे और इस कारण उन पर हमला भी नहीं करते थे-ऐसे लोग थे ग्वाले, बढ़ई, कुम्हार, लुहार, धोबी, नाई आदि। कभी-कभी इन वर्गों ने भी आदिवासियों के आंदोलन में साथ दिया। अत: सीमित अर्थ में आंदोलन के वर्गीय चरित्र की बात की जा सकती है।

आदिवासी आंदोलन का नेतृत्व कबीलाई था। उनके बीच कोई खास राजनीतिक समझ नहीं थीं। आंदोलन के नेता जादुई ताकत में विश्वास करते थे। बिरसा, सिद्धो और कान्हो आदि इसी प्रकार के नेता थे।

आदिवासियों का आंदोलन मूलत: हिंसक था। ये अपने विरोधियों का कत्ल कर देते थे। 1857 के बाद जबकि महत्वपूर्ण आंदोलनों के स्वरूप में बदलाव आया, आदिवासी आंदोलन हिंसक ही बने रहे। यही कारण है कि सरकार ने उन्हें दबाने के लिए और अधिक हिंसा का प्रयोग किया।

आदिवासी आंदोलन किसी जागृत चेतना का परिणाम नहीं था। ये किसी नई विचारधारा की स्थापना के लिए भी संघर्ष नहीं कर रहे थे। इनका संघर्ष पुरानी व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ही था। अत: आंदोलन की दृष्टि पश्च थी।

विद्रोह की असफलता के कारण ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: आदिवासी विद्रोह (Tribal Rebellion) Part 2

सबसे पहले तो संघर्ष की तकनीक में अंतर था। अंग्रेजी सेना आधुनिक सैन्य उपकरणों से सुसज्जित थी, जबकि आदिवासियों के पास परंपरागत हथियार भाले और तलवार थे। अत: यह संघर्ष दो गैर-बराबर पक्षों का था। विद्रोह के क्षेत्र सीमित होते थे, अत: अंग्रेजों के लिए उन्हें दबाना आसान था। ये विद्रोह सिर्फ इस कारण शांत नहीं हो गए कि अंग्रेजी सैन्य व्यवस्था उत्तम थी, बल्कि इन विद्रोहों के पश्चातवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू अंग्रेजों ने उनकी शिकायतों की तरफ ध्यान दिया एवं उचित विधि व्यवस्था की स्थापना की।