पहला प्रतिवेदन सूचना का अधिकार (First Report: Right to Information) Part 2for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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दव्तीय प्रशासनिक सुधार आयोग के इस प्रथम प्रतिवेदन में गोपनीयता एवं अन्य संबंधित कानूनों के प्रावधानों और नियमों के साथ-साथ सूचना के अधिकार (आर. टी. आई.) अधिनियम और इससे जुड़े मुद्दे पर विश्लेषण किया है। रिपोर्ट में विधायिका एवं न्यायपालिका पर इस काननू की क्रियान्विति पर भी एक संक्षिप्त अध्याय दिया गया है। इस प्रतिवदेन में वर्णित अनुशंसाएँ इस प्रकार हैं-

  • शासकीय गोपनीयता, अधिनियम, 1923 को समाप्त किया जाना चाहिए तथा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम में शासकीय (आधिकारिक) गोपनीयता के प्रावधान जोड़े जाने चाहिए। इस संबंध में एच. डी. शोरी समिति के प्रावधान अमल में लाए जा सकते है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा-1223 में संशोधन करते हुए उसे सूचना के अधिकार से संगत बनाया जाना चाहिए।
  • मंत्रिगण गोपनीयता के स्थान पर पारदर्शिता की शपथ ले।
  • सूचना के अधिकार के अंतर्गत छूट प्राप्त संगठनों की अनुसूची में सशस्त्र सेनाओं को सम्मिलित किया जाए तथा इस अनुसूची की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए।
  • केन्द्रिय सिविल (नागरिक) सेवा (आचरण) नियमों में संशोधन करते हुए इसमें लोक सेवकों दव्ारा-सूचना प्रकटन का प्रावधान किया जाना चाहिए।
  • कार्यालय प्रक्रिया संहिता के पेरा 116 में संशोधन कर उसे आर. टी. आई. से संगत बनाया जाना चाहिए तथा पैरा 118 (1) हटा देना चाहिए।
  • भारत सरकार दव्ारा विभागीय सुरक्षा निर्देशों में संशोधन कर सूचनाओं का वर्गीकरण करना चाहिए अर्थात कौनसी सूचना प्रकटन योग्य है तथा कौनसी गोपनीय परम गोपनीय या प्रतिबंधित प्रकृति की है। इनकी ग्रेडिंग (पदवी) विभागीय अधिकारी करें।
  • केन्द्रीय सूचनाआयोग (सी. आई. सी.) के लिए चयन समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता (लोकसभा) तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश हों तथा राज्यों में मुख्यमंत्री, विपक्ष का नेता (विधान सभा) तथा राज्य का मुख्य न्यायाधीश हो।
  • सी. आई. सी. के चार क्षेत्रीय कार्यालय होने चाहिए। बड़े राज्यों में एस. आई. सी. के क्षेत्रीय कार्यालय होने चाहिए।
  • सूचना आयोगों में कम-से कम आधे सदस्य गैर सिविल (नागरिक) सेवा पृष्ठभूमि के हो।
  • एक से अधिक पीआईओ वाले मंत्रालयों या विभागों या संगठनों दव्ारा सभी पीआईओ की ओर से सूचनार्थ अनुरोध प्राप्त करने के प्राधिकार के साथ एक नोडल सहायक पीआईओ पदनामित होना चाहिए।
  • केन्द्रीय सचिवालय में पीआईओ कम-से-कम उप सचिव या निदेशक स्तर का होना चाहिए।
  • भारत सरकार एवं राज्य सरकारों की रिकॉर्ड (प्रमाण) एकत्रण वाली संस्थाओं को मिलाकर एक ‘सार्वजनिक अभिलेख कार्यालय’ स्थापित करना चाहिए जो सीआईसी⟋एसआईसी के समग्र पर्यवेक्षण एवं मार्गदर्शन में कार्य करेंगा।
  • एक वरिष्ठ उपाय के रूप में भारत सरकार को, अभिलेखों को अद्यतन बनाने, आधारभूत संरचना सुधारने एवं संहिताएँ तैयार करने हेतु पाँच वर्षीय अवधि के सभी प्रमुख कार्यक्रमों की निधियों का 01 प्रतिशत इस निमित पृथक कर देना चाहिए। इसका अधिकतम 25 प्रतिशत जागरूकता सृजन हेतु व्यय किया जा सकता है। साथ ही भू-अभिलेख आधुनिकीकरण भी हो तथा सनवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू 2009 तक सभी संगठनों में डिजिटीकरण हो जाना चाहिए।
  • सभी स्तरों पर प्रशिक्षण एवं मॉनिटरिंग (निगरानी) (सीआईसी⟋एसआईसी दव्ारा) का कार्य हो। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग सभी मंत्रालयों, विभागों, संगठनों इत्यादि की पूर्ण सूची सदैव तैयार रखे। इस सूची में सात प्रकार का वर्गीकरण हो-
    • संवैधानिक निकाय
    • सूत्र अभिकरण
    • सांविधिक निकाय
    • लोक उपक्रम
    • कार्यकारी आदेशों से निर्मित निकाय
    • पर्याप्त रूप से वित्तपोषित⟋नियंत्रित या स्वामित्व वाले निकाय
    • पर्याप्त रूप से वित्तपोषित गैर सरकारी संगठन।
  • सीआईसी एवं एसआईसी लोक प्राधिकरणों पर निगरानी करने का कार्य भी कर सकते है। मुख्य सूचना आयुक्त की अध्यक्षता में ‘एक राष्ट्रीय समन्वय समिति’ भी बनायी जा सकती है।
  • आर. टी. आई. के अंतर्गत भुगतान पोस्टल (डाक का) ऑर्डर (क्रम) से भी लिये जाने चाहिये। राज्य सरकारें उपयुक्त राशि के स्टांप (डाक टिकट) भी जारी कर सकती है।
  • जिला स्तर पर ‘एकल खिड़की एजेन्सी’ (शाखा) होनी चाहिए।
  • सरकारी प्रवृत्ति के कार्य निष्पादित तथा सरकारी कार्य करने (एकाधिकार प्राप्त) वाले तथा पर्याप्त नियमन प्राप्त गैर सरकारी निकायों पर भी यह कानून लागू होना चाहिए।
  • देरी, उत्पीड़न तथा भ्रष्टाचार की शिकायतों से निपटने के लिए राज्यो को ‘स्वतंत्र लोक शिकायत समाधान प्राधिकरण’ गठित करने की सलाह दी जा सकती है।
  • तुच्छ एवं कष्टकर अनुरोध अस्वीकार किये जाने चाहिए किन्तु ऐसी मनाही सीआईसी पर एसआईसी को हस्तांतरित होनी चाहिए।
  • विधानमंडलों तथा न्यायपालिका पर भी आर. टी. आई. कानून लागू होना चाहिए। जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में प्रशासनिक प्रक्रियाओं को समयबद्ध तरीके से कम्प्यूटरीकृत (परिकलक) किया जाना चाहिए।