Science and Technology: Basic Concepts, Introduction and Welfare Science

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आधारभूत संकल्पनाएँ (Basic Concepts)

भूमिका (Introduction)

  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी किसी देश के विकास के दो अत्यन्त महत्वपूर्ण उपकरण हैं। वस्तुत: जैसा कि हम जानते हैं, विज्ञान किसी वस्तु अथवा पदार्थ अथवा संकल्पना को उस स्तर पर समझने की विधा है जिससे उसकी गहन और स्पष्ट सूचना प्राप्त हो जाती है। दूसरी ओर, प्रौद्योगिकी संकल्पनाओं तथा सिद्धांतों का व्यावहारिक स्वरूप है, जिनके माध्यम से न केवल मानव प्रजाति बल्कि संपूर्ण पृथ्वी तथा विशेषकर जैवमंडल के लिए विज्ञान को उपयोगी बनाया जाता है। विज्ञान से वस्तुत: ज्ञान की प्राप्ति होती है तथा प्रौद्योगिकी मनोवृत्तियों में सकारात्मक परिवर्तन करने में सक्षम है। संयुक्त रूप से समाज की अधोसंरचना तथा अधिसंरचना के निर्माण में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की व्यापक भूमिका है।
  • वर्तमान विश्व बाजार एवं तकनीक संचालित है। इसका अर्थ यह है कि प्रौद्योगिकी के माध्यम से संपूर्ण विश्व तथा संपूर्ण बाजार का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण आयाम कहा जा सकता है। साथ ही, सभ्यता तथा संस्कृति के परिवर्तनों पर भी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का व्यापक प्रभाव पड़ता है। निश्चित रूप से ये परिवर्तन भूमंडलीकरण के लक्ष्यों की प्राप्ति में पूर्णत: सहायक होंगे। हालांकि तकनीकी रूप से भूमंडलीकरण को परिभाषित नहीं किया जा सकता है लेकिन वृहद रूप से इसे साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों से अलग हटने की एक ऐसी प्रक्रिया कहा गया है जिससे एक विकसित तथा नई वैश्विक व्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विशेष योगदान है क्योंकि इसके माध्यम से विकास सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है। इसके लिए यह आवश्यक है कि संकल्पनाओं एवं सिद्धांतों को तकनीकों के माध्यम से व्यावहारिक बनाया जाये। इस प्रकार, यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों से विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत किया जा सकता है।
  • जहाँं तक संस्कृति का प्रश्न है, पुन: प्रौद्योगिकी के माध्यम से जीवन शैली को प्रभावित तो किया ही जा सकता है, साथ ही उन सभी सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रियाओं को भी सकरात्मक रूप से प्रभावित किया जा सकता है, जिनसे हमारे जीवन की सभी क्रियाओं को अर्थपूर्ण बनाया जाता है। जब तकनीकों को न्यूनतम स्तर पर लाकर पंरपरागत तकनीकों के साथ संबद्ध किया जाता है, तब उनसे विकास के रूप में प्रत्यक्षत: प्रतिफल प्राप्त होते हैं।
  • संस्कृति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण आयाम धर्म है। लेकिन विगत दो दशकों से इसे समाज को अस्थिर बनाने वाला एक कारक कहा जाने लगा है। ऐसी स्थिति में तकनीकों के माध्यम से इसे तार्किक आधार प्रदान किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, धर्म के विवेकीकरण में तकनीकों का विशेष योगदान होता है।
  • जहांँ तक सभ्यता के विकास तथा उसकी संवृद्धि का प्रश्न है, प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों की सहायता से उसके पदार्थीय एवं भौतिक लक्ष्य प्राप्त किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता को गत्यात्मक बनाने में भी प्रौद्योगिकी की विशेष भूमिका है। स्पष्टत: वैज्ञानिक एवं तकनीकी से गुणात्मक एवं मात्रात्मक परिवर्तन सुनिश्चित किये जा सकते हैं।
  • विगत वर्षों में विश्व भर में आर्थिक संवृद्धि के दृष्टिकोण से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के महत्व में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। आर्थिक उदारीकरण के इस दौर में कई अवसरों पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के कई आविष्कारों पर मानवता के विरुद्ध होने के आरोप भी लगाये गये हैं, जिनका मुख्य आधार कदाचित विश्व व्यापार संगठन के प्रावधान रहे हैं। ऐसे आरोपों में सर्वाधिक चर्चित पेटेंट संबंधी विवाद है। इस संबंध में यह भी कहा गया है कि नये पेटेंट कानून से विशेषकर विकासशील राष्ट्रों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। पेटेंट के अतिरिक्त, अन्य बहुचर्चित प्रौद्योगिकियों में पराजीनी (ट्रांसजेनेसिस) तकनीक विवादास्पद रही हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि वैज्ञानिकों के एक समूह दव्ारा यह आशंका व्यक्त की गई है कि ऐसी प्रजातियों से एक विशेष प्रकार के हानिकारक पदार्थ का स्राव किया जाता है, जो अन्य फसलों के लिए निश्चित रूप से हानिकारक सिद्ध होता है। लेकिन डा. एम. एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक अन्य समूह ने इस आशंका को निराधार बताया है। इस समूह का मानना है कि ऐसी परियोजनाओं को प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए।
  • कई अवसरों पर क्लोनिंग जैसी तकनीक पर भी विवाद उत्पन्न हुये हैं, जिसका कारण यह है कि इस तकनीक के विरोधियों का मानना है कि इससे प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन होता है। हांलाकि इनके अतिरिक्त भी कई तकनीकों पर विवाद होते रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद केवल कुछ नकारात्क पक्षों के आधार पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास को रोका नहीं जा सकता। केवल उन्हीं तकनीकों को प्रतिबंधित किया जाना अपेक्षित है जिनसे संपूर्ण मानव प्रजाति अथवा पारिस्थितिकी पर व्यापक कुप्रभाव पड़ते हैं।
  • तेजी से बदलते हुए परिदृश्य की पृष्ठीभूमि में यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि आने वाले वर्षों में भी वैश्विक परिवर्तनों से वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी विकास प्रभावित होंगे। इसका मूल कारण यह है कि वैश्विक स्तर पर कई संस्थाओं के प्रवेश से एक ओर जहांँ विकास की नई संभावनाएंँ प्रबल हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर, वैज्ञानिक विकास के लाभों को न्यूनतम स्तर तक पहुंँचने का भी कार्य किया जा रहा है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि आगामी वर्षों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का दृष्टिकोण मानवतावादी होगा।
  • इस संदर्भ में यह अपेक्षा की जा सकती है कि ‘कल्याणकारी विज्ञान’ (Welfare Science) की संकल्पना के विकास पर बल देते हुये अपेक्षाकृत अधिक तार्किक, विवेकपूर्ण और सटीक ‘व्यावहारिक प्रौद्योगिकी’ (Behavioural Technology) का भी विकास किया जाये। इससे मानव प्रजाति के उन सभी व्यावहारिक पक्षों पर बल दिया जा सकेगा जो सतत्‌ विकास की अवधारणा को सफल बनाने में सहायक हैं। दूसरे शब्दों में, जैसा कि ऊपर कहा गया है, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय दृष्टिकोण से कल्याणकारी विज्ञान और व्यावहारिक प्रौद्योगिकी सतत्‌ विकास के दो महत्वपूर्ण आयाम हैं।

कल्याणकारी विज्ञान (Welfare Science)

  • हांलाकि विज्ञान से यह आशा की जाती है कि वह सभी जीवों का कल्याण सुनिश्चित करें, लेकिन कभी-कभी विकास की तीव्र आकांक्षा तथा कई अन्य अवसरों पर अंतर एवं अंतरा प्रजातीय स्तरों पर अपने प्रभुत्व के विस्तार के लिए संसाधनों का अधिक से अधिक दोहन करने की लालसा के कारण वैज्ञानिक संकल्पनाओं एवं सिद्धांतों और उनके व्यावहारिक पक्षों पर विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे में यह आरोप लगाये जाते हैं कि विज्ञान का कल्याणकारी पक्ष अत्यंत कमजोर हो गया है।
  • कल्याण वास्तव में किसी व्यक्तित्व के आंतरिक भाग को सकारात्मक रूप से प्रभावित तथा परिवर्तित करने वाले व्यावहारिक आयामों को संतुलित करने की एक संकल्पना है। इस आधार पर यदि विज्ञान से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के ऐसे सभी आयामों को प्रभावित किया जाता है तो उसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण की संज्ञा दी जाती है। कल्याणकारी विज्ञान ऐसे ही दृष्टिकोण के विकास का एक कारक है। अत: कल्याणकारी विज्ञान की संकल्पना न केवल जीवन शैली को परिवर्तित करने बल्कि उसे सही दिशा देने में भी सहायता हो सकती है। दूसरे शब्दों में कल्याणकारी विज्ञान किसी विषय, वस्तु अथवा संकल्पना की बेहतर समझ विकसित करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रभावकारी उपयोग का एक उपकरण है। यह भी सत्य है कि विज्ञान शिक्षा और स्वास्थ्य के स्तर को भी ऊँचा उठाने में व्यापक योगदान देता है। ये भी निश्चित रूप से कल्याणकारी विज्ञान के गत्यात्मक अवयव कहे जा सकते हैं।
  • कल्याणकारी विज्ञान एक गत्यात्मक संकल्पना है जिसके माध्यम से शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी प्रणालियों के लिए आवश्यक संसाधनों को गतिशील अथवा उत्पादक बनाया जा सकता है। ऐसे विज्ञान का उपयोग न केवल प्राथमिक स्तर पर विषयों की गहन जानकारी प्राप्त करने बल्कि उच्च स्तर पर युवकों एवं युवतियों को आकर्षित करने के लिए भी किया जाना अपेक्षित है ताकि उच्च तकनीकी अध्ययनों में मानव संसाधन के प्रवाह की निरंतरता बनी रह सके। साथ ही, पूर्व विद्यालयी शिक्षा में बच्चों को विज्ञान की आकर्षित करने के लिए कम से कम उपकरणों का प्रयोग किया जाना चाहिये।
  • जहांँ तक स्वास्थ्य का प्रश्न है, इस क्षेत्र में भी कल्याणकारी विज्ञान की महती भूमिका है। इसका मूल कारण यह है कि इससे जहाँ एक और बच्चों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर अभिभावकों को भी संवेदनशील तथा उतरदायी बनाने में सहायता प्राप्त की जा सकती है। कल्याणकारी विज्ञान का स्वास्थ्य संबंधी अवयव टीकाकरण जैसे कार्यक्रमों को पूर्ण रूप से सफल बनाने में सहायक हो सकता है। वस्तुत: कल्याणकारी विज्ञान का उद्देश्य यह होना चाहिये कि सेवाओं को समाज के न्यूनतम स्तर तक उपलब्ध कराये ताकि समाज की अधोसंरचना के निर्माण के लिए अनिवार्य सामाजिक आधारभूत संरचनाओं को निर्माण किया जा सके।
  • कल्याणकारी विज्ञान व्यक्तियों तथा समूहों के मध्य क्षैतिज समता स्थापित करने का भी प्रयास करता है। इससे समाज के सभी स्तर पर संसाधनों के समतामूलक वितरण में भी सहायता प्राप्त होती है। इस प्रकार, कल्याणकारी विज्ञान की संकल्पना संसाधनों की सृजनात्मकता, उत्पादकता तथा उनके वितरण के प्रति उत्तरदायी है जो किसी राष्ट्र के विकास एवं संवृद्धि में प्रत्यक्ष योगदान देती है।
  • जैसा कि ऊपर कहा गया है, कल्याणकारी विज्ञान सतत्‌ विकास का प्रमुख भाग है। इसका तात्पर्य यह है कि इसके दव्ारा सतत्‌ विकास के संसाधन संबंधी सभी आयामों को व्यावहारिक बनाकर उनके दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, कल्याणकारी विज्ञान से सतत्‌ विकास को वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान किया जा सकता है। तकनीकी रूप से यह कहना तार्किक है कि ऐसे ही दृष्टिकोण का प्रयोग सतत्‌ विकास के अन्य सभी अवयवों को सही अर्थों में समझा जा सकता है। तभी उन अवयवों को व्यावहारिक बनाकर उन्हें जैवमंडल तथा संपूर्ण प्रकृति के लिए उपयोग बनाना संभव है। स्पष्टत: कल्याणकारी विज्ञान प्राकृतिक संसाधनों को देश के विकास के लिए आवश्यक राष्ट्रीय संसाधनों में रूपांतरित करने वाला एक महत्वपूर्ण उपकरण है।