रजवाड़ों की जनता के आंदोलन (People՚s Agitation in Princely States) Part 2 for NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.

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रियासतों में स्वाधीनता आंदोलन का प्रवेश एवं प्रगति ~NET, IAS, State-SET (KSET, WBSET, MPSET, etc.), GATE, CUET, Olympiads etc.: रजवाड़ों की जनता के आंदोलन (People՚s Agitation in Princely States) Part 2

ब्रिटिश भारत में फैले राष्ट्रीय आंदोलन का प्रसार रजवाड़ों में भी हुआ। इसकी पैठ 20वीं सदी के प्रारंभ में हुई, जब आतंकवादी-राष्ट्रवादियों ने भागकर वहाँ शरण ली। परन्तु एक तरह से हम यह कह सकते हैं कि रियासतों की जनता स्वाधीनता आंदोलन में 1920 - 21 के असहयोग एवं खिलाफत आंदोलन के बाद सही ढंग से प्रवेश की। इस आंदोलन के फलस्वरूप विभिन्न रियासतों यथा, मैसूर, हैदराबाद , बड़ौदा, जामनगर, इंदौर, नवानगर, काठियावाड़ और दक्कन के रियासतों में ‘स्टेट (राज्य) पीपुल्स (लोग) कॉन्फ्रेंन्स’ (सम्मेलन) नामक संस्था का गठन हुआ। इस प्रकिया की पराकाष्ठा सनवित रुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्र्‌ुरुक्ष्म्ग्।डऋछ।डम्दव्रुरू 1927 ई. में हुई, जब ‘ऑल (पूरा) इंडिया (भारत) स्टेट (राज्य) पीपुल्स (लोग) कॉन्फ्रेंन्स (सम्मेलन) ’ का आयोजन किया गया एवं इसमें विभिन्न रियासतों के 700 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई- बलवन्त राय मेहता, मणिलाल कोठारी एवं जी. आर. अभ्यंकर ने। इन्होंने देसी रियासती क्षेत्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की। जो आंदोलन चला रखा था, उसे ही प्रजा मंडल आंदोलन कहा जाता है।

जहाँ तक कांग्रेस का रियासतों के आंदोलन में हस्तक्षेप का प्रश्न है, यह 1920 के नागपुर अधिवेशन से संभव हो सका। जिसमें रियासत के शासकों को यह कहा गया कि वे अविलंब वहाँ पर उत्तरदायी सरकार का गठन करें साथ ही रियासतों की जनता को कांग्रेस संगठन में सदस्य बनने की अनुमति दे दी। परन्तु इसके साथ ही यह भी कहा गया कि वे कांग्रेस के नाम पर रियासत में किसी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों का प्रारंभ नहीं कर सकते। ऐसा उन्होंने निम्न कारण से किया:

  • ब्रिटिश भारत एवं रियासतों की स्थिति में अंतर था।
  • रियासतों के मध्य भी स्थिति अलग-अलग थी।
  • वहाँ की जनता दलित, पिछड़ी एवं अशिक्षित थी।
  • कानूनी तौर पर रियासतें स्वाधीन थीं।

रियासत की जनता को कांग्रेस के नाम पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं करने देने का उद्देश्य यह था कि वह स्वयं संघर्ष के लिये संगठित हो। 1927 में कांग्रेस ने 1920 वाली बात को ही दुहराया एवं 1929 के लाहौर अधिवेशन में नेहरू ने स्पष्ट कहा कि देसी रियासतें अब शेष भारत से अलग नहीं रह सकतीं एवं इन रियासतों के तकदीर का फैसला सिर्फ वहाँ की जनता ही कर सकती है। बाद के वर्षों में कांग्रेस ने राजाओं से रियासतों में मौलिक अधिकारों की बहाली की माग की।