चुनावी परिदृश्य और मुफ्त उपहार (Election Landscape and Free Gifts- Governance and Governance)

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§ हाल के समय में, विभिन्न दलों के दव्ारा अपने चुनावी घोषणा-पत्र में मुफ्त लैपटॉप, शिक्षा-ऋण माफी, मुफ्त पानी की आपूर्ति आदि सुविधाएं मुफ्त प्रदान करने का वादा किया जा रहा है।

§ यह पैटर्न (नमूना) दक्षिणी राज्यों में अधिक उभर रहा है और दिन-ब-दिन चुनावों में यह प्रवत्ति बढ़ती जा रही है।

§ इस प्रवत्ति के लगातार बढ़त जाने ने सुप्रीम कोर्ट को वर्ष 2013 में हस्तक्षेप करने के लिए विवश कर दिया। न्यायालय के दव्ारा राजनीतिक दलों के दव्ारा अपने घोषणा-पत्र में शामिल किये जाने वाले वादो के संबंध में चुनाव आयोग को दिशा-निर्देश तैयार करने के निर्देश दिया।

निर्वाचन आयोग के दव्ारा आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) में धारा 8 को जोड़ा गया है जिसके अनुसार

• चुनाव घोषणा-पत्र में संविधान के आदर्शो के खिलाफ कुछ भी नहीं होना चाहिए और घोषणा-पत्र को आदर्श आचार संहिता की भावना के अनुरूप होना चाहिए।

• पारदर्शिता, समान अवसर और वादों की विश्वसनीयता के साथ ही यह अपेक्षा भी की जाती है घोषण-पत्र का स्वरूप तार्किक हो अर्थात्‌ इसमें किये गए वादों को पूरा करने के लिए वित्तीय साधनों और स्रोतों का भी जिक्र किया गया हो।

• मतदाताओं का भरोसा केवल उन वादों के माध्यम से जीता जाना चाहिए जिन्हें पूरा किया जाना संभव हो।

इस व्यवस्था में निहित समस्या

• आदर्श आचार संहिता कानून दव्ारा प्रवर्तनीय नहीं है।

• घोषणा-पत्र की सामग्री को सीधे नियंत्रित करने के लिए कोई अधिनियमन नहीं है।

• जन प्रतिनिधि कानून की धारा 123 रिश्वत को एक अपराध घोषित करता है लेकिन किसी पार्टी (राजनीतिक दल) विशेष के दव्ारा मतदान की किसी भी शर्त के बिना प्रत्येक व्यक्ति को मुफ्त वस्तुएं देने के वादे को रिश्वत देने के रूप में नहीं माना जा सकता।

मुफ्त देने का प्रभाव

• लोकतंत्र पर यह चुनाव प्रक्रिया पर प्रभाव डाल सकता है और पार्टी विशेष के पक्ष में मतदाताओं को लुभा सकता है।

• सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुफ्त प्रदान करने के वादे ने बहुत हद तक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित किया है उसने इससे समान प्रतिस्पर्धा को भी प्रभावित किया है।

लेकिन एक राय यह है कि

• मतदाता को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है और इन मुफ्त वस्तुओं के माध्यम से मतदाताओं को आसानी से प्रभावित नहीं किया जा सकता। एक बार मतदाता के इन मुफ्त वादों के वित्तीय निहितार्थ को समझ लेने पर बहुत कम संभावना है कि तर्कहीन वादों के आधार पर वे किसी पार्टी को मत देंगे।

• मतदान की गोपनीयता सुनिश्चित करती है कि उपहार, मतदाताओं के निर्णयन को प्रभावित नहीं करे। वास्तव में, मुफ्त वस्तुएं प्रदान करने का वादा करने वाला राजनीतिक दल दुविधा की स्थिति में होता है क्योंकि यह समझ पाना मुश्किल है कि मतदाताओं के दव्ारा किसके लिए मतदान किया गया है।

• कुछ प्रयोगों से भी स्पष्ट होता है कि मुफ्त वस्तुएं प्रदान करने के वादे और किसी पार्टी के लिए मत करने के बीच कोई संबंध नहीं है।

• अर्थव्यवस्था पर

• यह सरकारी खजाने पर भारी बोझ डालता है पार्टी के दव्ारा सत्ता में आने पर राजकोष से भारी व्यय किया जाता है।

• राज्यों पर कर्ज का बोझ कई गुना बढ़ जाता है और दृष्टव्य है कि कुछ राज्यों में राजस्व घाटे का आकार काफी बड़ा है।

• यह आवश्यक सेवाओं और विकास कार्येक्रमों से संशोधनों को डायवर्ट (दूसरी तरफ मोड़ देना/जी बहलाना) करता है।

• लोगों के कल्याण पर

• विद्यालय की लड़कियों के लिए साइकिल वितरण योजना से विद्यालय छोड़ने की दर कम हुई है और लैपटॉप देने से छात्रों के लिए अवसर बढ़े हैं।

• इन मुफ्त वस्तुओं के वितरण मेंं वास्तव में जमीनी स्तर पर बहुत कम भ्रष्टाचार व्याप्त है सरकार दव्ारा जारी कल्याणकारी योजनाओं में इसे देखा जा सकता है।

• लेकिन यह सरकार के समाज कल्याण के दायित्व को मुफ्त वस्तुएं प्रदान करने तक सीमित कर देता है जबकि शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाएं उपेक्षित हो जाती हैं।

• प्रशासन पर यह कुद मामलों में निर्णय लेने के कार्य को सहज बनाता है जिसके परिणाम स्वरूप जनता को बेहतर सेवा प्रदान करने में सहायता मिलती है।

• लेकिन यह हमारी राजनीति के लोकतांत्रिक प्रकृति के खिलाफ है।

आगे की राह

• यदि पार्टी के दव्ारा कुछ वादा किया गया है तो इसे कार्यान्वित करने की योजना और आवश्यक धन के स्रोत का भी स्पष्ट संकेत किया जाना चाहिए।

• चुनाव घोषणा-पत्रों से संबंधित प्रावधानों को समाहित करने वाला एक कानून लाया जा सकता है।