घरेलू हिंसा (Domestic Violence – Social Issues)

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स्सांद ने पति या उसके रिश्तेदारों के दव्ारा की जाने वाली घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा के लिए कई कानून बनाए हैं।

• दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961

• 1983 में भारतीय दंड संहिता में अनुच्छेद 498- ए जोड़ा गया

• घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005

मुद्दा

• इन्हें मूक पीड़ितो की आवाज़ देने वाला ऐतिहासिक कानून माना गया है।

• लेकिन साथ ही इनका दुरुपयोग भी बड़ी संख्या में होता है। ज्यादातर मामलों में पति के रिश्तेदारों को गलत तरीके से फंसा दिया जाता है और उन्हें आपराधिक न्याय प्रणाली की कठोरता से गुजरना पड़ता है।

• इसलिए इन कानूनों में संशोधन की माँग उठती रहती है। हाल ही में यह मुद्दा राज्यसभा में भी उठाया गया था।

संशोधन के पक्ष में तर्क

• सजा की कम दर-राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड (दर्ज करना) ब्यूरों (तथ्यों की जानकारी प्रदान करने वाला कार्यालय) के अनुसार वर्ष 2014 में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पंजीकृत 426 मामलों में से केवल 13 मामलों में किसी को दोषी करार दिया गया था।

संशोधन के विपक्ष में तर्क

• इन कानूनों को व्यापक सामाजिक उद्देश्य है। उनके दुरुपयोग या दुरुप्रयोग की संभावनाओं को ज्यादा महत्व देकर भी उनके उद्देश्य को कमतर नहीं किया जा सकता।

दुरुपयोग के कारणों का विश्लेषण

• जरूरी नहीं है कि सजा की कम दर कानून के दुरुपयोग की वजह से ही हो, समझौता या सबूत आदि की कमी भी सजा न होने में एक भूमिका निभाते हैं।

अपनी 243वीं रिपोर्ट में विधि आयोग दव्ारा दुरुपयोग के ये असली कारण बताये गए थे ~Domestic Violence – Social Issues General Studies in Hindi

• पुलिस दव्ारा गिरफ्त़ारी के अधिकार का लापरवाह उपयोग: गिरफ्त़ारी इसलिए की जाती है ताकि आरोपी पीड़ित को और नुकसान न पहुँचा पाए। लेकिन इसे कम ही उपयोग में लाया जाना चाहिए क्योंकि यह आरोपी की प्रतिष्ठा को अपरिर्तनीय क्षति पहुंचाता है जिससे बाद में सुलह की संभावना बहुत कम हो जाती है।

• वैवाहिक विवाद समाधान के प्रति दृष्टिकोण: दोनों पक्षों के बीच सुलह की संभावना के साथ ही सुलह की आवश्यकता के कारण यह अन्य आपराधिक मामलों से अलग होते हैं।

विधि आयोग के अनुसार सुझाव

• डी. के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल बाद में सर्वोच्च न्यायालय दव्ारा गिरफ्तारी को लेकर दिए गए दिशा-निर्देशों का पुलिस दव्ारा पालन किया जाना चाहिए।

• जरूरी होने पर ही गिरफ्तारी की जानी चाहिए।

• अगर तथ्य आरोपी की क्रूरता न दर्शाऐ तो गिरफ्तारी करने से पहले सुलह और मध्यस्था जैसे विवाद निपटान तंत्र का अनिवार्य रूप से उपयोग किया जाना चाहिए।

• दोनों पक्षों को राजीनामें का विकल्प देना चाहिए।

• वैवाहिक मुकदमों में पुलिस, वकीलों और न्यायपालिका के बीच संवदेनशीलता बढ़ाने की आवश्यकता है।