लैंगिक असमानता-प्रादेशिक सेना (Gender Inequality Territorial Army – Social Issues)

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लैंगिक असमानता-प्रादेशिक सेना

§ प्रादेशिक सेना को संचालित करने वाले कानून में मौजूद एक प्रावधान जो लाभप्रद रोजगार में लगी महिलाओं की नियुक्ति पर रोक लगाता है, को चुनौती देने वाली याचिका पर हाल में दिल्ली उच्च न्यायालय ने रक्षा मंत्रालय और प्रादेशिक सेनाओं को नोटिस (सूचना) भेजा है।

चिंताएं

§ महिलाओं की नियुक्ति पर रोक का तात्पर्य ‘संस्थानिक भेदभाव’ हुआ जो मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का उल्लघंन है।

§ लिंग के आधार पर भेदभव संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।

§ वर्तमान में प्रादेशिक सेना में केवल पुरुषों की ही नियुक्ति होती है। (gainfully employed) (समृद्धि कारक/ लाभप्रद रोजगार प्राप्त)

§ भारत, वैश्विक लैंगिक असमानता सूचकांक में 127वें और लैंगिक अंतराल में 114 वें स्थान पर हैं।

प्रादेशिक सेना

§ स्थायी सेना के बाद यह संगठन देश की दूसरी रक्षा पंक्ति है। सैन्य प्रशिक्षण पा चुके स्वयंसेवकों से इसका गठन होता है, जो आपातकालीन परिस्थितियों में कार्य करती है।

§ यह कोई नौकरी या रोजगार का स्रोत नहीं है। प्रादेशिक सेना से जुड़ने के लिए लाभप्रद रोजगार या किसी नागरिक पेशे में स्व-रोजगार होना एक पूर्व आवश्यक शर्त होती है।

§ जनजीवन प्रभावित होने के स्थितियों या देश की सुरक्षा पर खतरे की स्थिति में यह जरूरी सेवाओं के रखरखाव में मदद करती है।

§ प्रादेशिक सेना कानून के प्रावधानों के अनुसार महिलाएं इस संगठन से जुड़ने की पात्र नहीं हैं।