सराेेगेसी (किराए की कोख) (Surrogacy – Social Issues)

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सुर्खियों में क्यों?

§ बंबई उच्च न्यायालय ने मध्य रेलवे को निर्देश दिए है कि उस महिला कर्मचारी को तीन महीने का मातृत्व अवकाश दिया जाये जो सराेेगेसी (किराए की कोख) का उपयोग करके माँ बनी है।

§ अदालत ने फैसला दिया कि किसी सामान्य काम काजी महिला की तरह सरोगेट दव्ारा माँ बनने वाली महिला को भी बाल-दत्तक ग्रहण अवकाश तथा नियम के तहत मातृत्व अवकाश लाभ प्राप्त करने का पूरा अधिकार है।

§ महिला के वकील ने अदालत में दलील दी कि अगर महिला को मातृत्व अवकाश नहीं मिलता तो यह निश्चित रूप से एक बच्चे को माँ के साथ संबंध विकसिम करने के अधिकार का उल्लंघन होगा।

भारत में सरोगेसी का वर्तमान परिदृश्य

§ भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी को वर्ष 2002 से कानूनी रूप से वैधता प्राप्त है।

§ वैश्विक स्तर पर भारत में सरोगेसी के लिए एक पंसदीदा गंतव्य माना जाता है और इसे “प्रजनन पर्यटन” के रूप में जाना जाता है।

§ भारत में सरोगेसी की लागत अपेक्षाकृत कम है और कानूनी वातावरण भी अनुकूल है।

§ वर्तमान में सहायक प्रजनन तकनीक क्लीनिक (निजी चिकित्सालय) के दिशा-निर्देश तथा दंपत्तियों और सरोगेट माँ के मध्य सरोगेसी अनुबंध ही मार्ग दर्शक हैं।

§ 2008 में मंजी (जापानी बेबी) मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी की अनुमति है। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने संसद को सरोगेसी के लिए एक उचित कानून पारित करने के लिए भी कहा था।

§ सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए सांसद में सहायक प्रजनन तकनीक विधेयक अधिनियमित किया गया था, जो अभी तक लंबित है।

§ सरोगेट माँ का शोषण और बच्चों का वस्तुकरण (commodification) चिंता के प्रमुख विषय हैं जिनका निवारण कानून को करना है।

सरोगेसी पर विधि आयोग की रिपोर्ट (विवरण)

§ भारत के विधि आयोग ने “सहायक प्रजनन तकनीक और सरोगेसी के अंतर्गत समम्मिलित विभिन्न पक्षों के उत्तरदाियितत्व और अधिकरों के विनियमन के लिए काून की जरूरत” पर विवरण प्रस्तुत किया है।

§ आयोग ने दृढ़ता से वाणिज्यिक सरोगेसी का विरोध किया है।

§ आयोग ने कहा कि बच्चा चाहने वाले जोड़े में से एक व्यक्ति को डोनर (दाता) होना चाहिए क्योंकि जैविक संबंधों के होने से ही एक बच्चे के साथ प्यार और स्नेह उत्पन्न होता है।

§ कानून को स्वयं ही गोद लेने की आवश्यकता या अन्य किसी माता-पिता घोषित करने संबंधी विज्ञप्ति के बिना भी पैदा हुए बच्चे की दंपत्ति के वैध बच्चे के रूप में मान्यता देनी चाहिए।

§ दाता के साथ ही सरोगेट माँ के निजता के अधिकार की भी रक्षा की जानी चाहिए।

§ लिंग-चयनात्मक सरोगेसी को पूर्णतया प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

§ गर्भपात के मामलों को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (चिकित्साशास्त्र गर्भपात, गर्भवती) अधिनियम, 1971 दव्ारा नियमित किया जाना चाहिए।