बाजीगर (पंजाब के कलाबाज़) असुर जनजाति (Baazigar Punjab՚s Acrobat Asur Tribe – Culture)

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• ये भारत और पाकिस्तान में फैली पंजाब की अनुसूचित जातियों का एक समुदाय है।

• मूल रूप से खानाबदोश प्रकृति का यह समुदाय मूलत: अपने आपको राजस्थान के राजपूतों से संबद्ध करता है। इन्होंने पिछली 3 शताब्दी में उत्तर पश्चिम भारत में बसना शुरू किया।

• इनका मुख्य पेशा बाजी (कूदना और कलाबाजियाँ करना) है किन्तु वर्तमान में समुदाय के अधिकांश व्यक्ति अनियमित श्रमिक के रूप में काम करते हैं।

• बाजी के पेशे के अस्थायी प्रकृति के होने के कारण इनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है।

असुर जनजाति

• इस जनजाति के सदस्य झारखंड, बिहार के कुछ हिस्सों, पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य राज्यों में रहते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड में 22,459 और बिहार में 4,129 असुर जनजाति के लोग रहते हैं।

• असुर जनजाति के लोग महिषासुर (एक महिष-दानव जिसे देवी दुर्गा ने नौ रातों तक चलने वाले एक विकट युद्ध के बाद मार गिराया था) के वंशज होने का दावा करते हैं। हिन्दू धर्म में इसी पौराणिक कथा को नौ दिवसीय दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। लेकिन असुर जनजाति के लोग इसे ‘महिषासुर दशैं’ के रूप में मनाते हें, जिसमें वह शोक की अवधि के दौरान काफी हद तक घर के अंदर रहते हैं।

• परंपरागत रूप से, असुर जनजाति के लोग लौह धातु गलाने वाले व स्थानांतरित कृषि करने वाले रहे हैं। इस प्रकार, वे खानाबदोश थे।

• एक मत के अनुसार, मगध साम्राज्य को असुरों दव्ारा बनाए गए हथियारों से बहुत लाभ हुआ।

• लेकिन वन अधिनियम और विनियमों ने जंगलों पर से उनका पारंपरिक अधिकार छीन लिया है। इससे उनकी लोहा गलाने और स्थानांतरित कृषि के उनकी अभ्यास की प्रक्रिया भी प्रभावित हुई है। अब वे गांवों में बस गए हैं।

• उनका अपना लोहा गलाने को परंपरागत कौशल भी खोता जा रहा है।

• यूनेस्को दव्ारा असुर भाषा को “अनिवार्यत: लुप्तप्राय” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है क्योंकि इसके केवल 7000 बोलने वाले शेष रह गए हैं।